पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३१०

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प्रेथम सोपान, बालकाण्ड । २५ सोइ पुरारि-कोदंड कठोरा । राज-समाज आजु जेई तोरा त्रिभुवन-जय-समेत बैदेही । बिनहिँ बिचार बरह हठि तेही ॥२॥ वहीं शिवजी के कठोर धनुष को आज जो कोई राज-समाज में तोड़ेगा, तीनों लोकों की विजय सहित जानकी को उसके साथ बिना विचार ही हठ से ब्याह देंगे ॥२॥ त्रिलोकी विजय और जानकी दोनों का साथ ही वरण 'सहोक्ति श्रलंकार' है। 'बिना ६ विचारे ही हठ से कन्या भ्याई देंगे' इन वाक्यों में राजा जनक की प्रतिक्षा की निन्दा व्यक्षित होना गूढ़े व्या है। सुनि पन सकल भूप अभिलाखे । भट मानी अतिसय मन माखे । परिकर बाँधि उठे अकुलाई। चले इष्टदेवन्ह सिर नाई ॥ ३ ॥ प्रतिक्षा सुन कर सम्पूर्ण राजा उत्कण्ठित हुए, अभिमानी योद्धा मन में अत्यन्त मखा गये। फेटा बाँध कर उतावली से उठे और इष्टदेवों को सिर नवा कर चले ॥३॥ अभिलाषा धनुष तोड़ने और जानकी प्राप्त करने की हुई । मानी भट इसलिए नाराज हुए कि यह कौन सी वीरता का काम है जिसके लिए बन्दीजनों ने इतने कड़े शब्द कहे हैं । अकु- लाई शन्द में लक्षणा-मुलके व्यङ्ग है कि कहीं ऐसान हो मैं धनुष तक न पहुंचने पाऊँ और कोई तोड़ डाले। इष्टदेवन्द सिरनाई इस शिशष्ट शब्द बारा कविजी एक गुप्त अर्थ खोल कर कहते हैं कि जब राजा लोग धनुष तोड़ने चले तब उनके इष्टदेवों ने सिर नीचा कर लिया, वे समझ गये कि आज इसने मेरी मर्यादो को धूल में मिलाया, यह 'विवृतोक्ति अलंकार' है। तमकि ताकि तकि सिव-धनु धरहीं। उठइ न कोटि आँति बल करहीं ॥ जिन्ह के कछु बिचार मन माहीं। चाप समीप महीप न जाहीं ॥४॥ क्रोध से देख कर और निगाह जमा कर शिवजी के धनुष को पकड़ते हैं, करोड़ों तरह का बल करते हैं पर वह उठता नहीं। जिन राजाओं के मन में कुछ विचार है, वे के पांस नहीं जाते हैं ॥४॥ ' कारण विद्यमान रहते कार्य का न होना अर्थात् बड़े बड़े योद्धा राजा धनुष तोड़ने के लिए जोर लगा रहे हैं, पर टुटना तो दूर रहा वह हिलता तक नहीं 'विशेषोक्ति अलंकार' है। दो-तमकि धरहि धनु मूढ़ नप, उठइ न चलहिँ लजाइ । मनहुँ पाइ अट बाहु बल, अधिक अधिक गरुआइ ॥ २० ॥ मूर्ख राजा गुस्से से धनुष को पकड़ते हैं, वह उठता नहीं तव लजां कर चले आते हैं। ऐसा मालुम होता है कि मानों योद्धाओं के बाहु-बल को पा कर वह (धनुष) अधिक अधिक गरुया होता जाता है ॥ २५॥ धनुष स्वतः गरुत्री और कठिन है जिसको कोई भट हिला नहीं सकता किन्तु राजाप्रो । के भुजबल से गम नहीं होता है। इस हेतु को हेतु ठहराना 'असिद्धविषया हेतूप्रेता अलंकार है। धनुष