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पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३५८

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । २९६ बिन्दी लगाना । (क) ठोदी पर तिल बनाना । (8) हाथ-पाँव के तलुवों पर मेहँदी का रस चढ़ाना । (१०) शरीर में केशरादि से बना जल या इत्र लगाना । (११) रत्न जड़ित भूषण धारण । (१२) दाँत पर मिस्सी । (१३) मुख में पान । (१४) ओठ लाल करना । (१५) आँस में काजल । (१६) हाथ में सुगन्धित फूल लेना। गवहिँ मङ्गल मञ्जुल बानी । सुनि कल-रव कलकंठ उजानी ॥ भूप भवन किमि जाइ बखाना । बिस्व-बिमोहन रचेउ बिताना ॥२॥ शोभन वाणी से मङ्गल गाती हैं. उनके सुन्दर स्वर को सुन कर कोयल लजा जाती है। राजा का महल कैसे बखाना जाय, जहाँ जगत को मोहित करनेवाला मण्डप बनाया गया है ॥२॥ मङ्गल-द्रव्य मनोहर नाना । राजत बाजत बिपुल निसाना ॥ कतहुँ बिरद बन्दी · उच्चरहीं । कतहुँ बेदं धुनि भूसुर करही ॥३॥ नाना प्रकार की माइतीक वस्तुएँ शोभित हो रही हैं और बहुत से नगारे बजते हैं। कही बन्दीजन नामवरी उच्चारण करते हैं और कहीं ब्रामय वेद-ध्वनि करते हैं ॥३॥ गावहिँ सुन्दर मङ्गल गीता । लै लै नाम ' राम अरु सीता ।। बहुत उछाह भवन अति थोरा । मानहुँ उमगि चला चहुँ ओरा ॥४॥ रामचन्द्रजी और सीताजी का नाम ले ले कर सुन्दरियाँ मङ्गल गीत गाती हैं । उत्साह बहुत है और स्थान अत्यन्त थोड़ा है, ऐसा मालूम होता है मानों चारों ओर उमड़ चला है ॥४॥ स्थान केवल चौदह लोक है। किन्तु उत्साह बहुत है, इससे मानों वह लोकों से बाहर उमड़ चला है । लोकों के बाहर हत्साह का उमड़ कर जाना कवि की कल्पना मात्र है, वसु- धा के अतिरिक्त वह कहाँ जायगा 'अनुक्तविषया वस्तूत्मक्षा अलंकार' है । उत्साह धेय है और लोक आधार है। आंधार से श्राधेय का बड़ा होना अधिक अलंकार' है। पक टीका. कार से आतक अलंकार कहते हैं, किन्तु आवक नाम का कोई अलंकार देखने में नहीं आता है। यह उत्प्रेक्षा और अधिक का सन्देहसङ्कर है। दो०-सोभा दसरथ मवन के, को कबि बरनइ पार । जहाँ सकल-सुर-सीस-मनि, राम लीन्ह औतार १२९७॥ दशरथजी के मन्दिर की शोभा वर्णन कर के कौन कवि पार पा सकता है ? जहाँ सम्पू- णं देवताओं के शिरोमणि रामचन्द्रजी ने जन्म लिया है ॥२६७।। राजा दशरथ के महल की शोमा वर्णन कर के कोई कवि नहीं पार पा सकता है। इस बात का युति से समर्थन करना कि जहाँदेवताओं के मुकुटमणि रामचन्द्रजी ने अवतार लिया, वह सर्वथा अवर्णनीय काव्यलिग अलंकार' है।