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पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/८९५

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t ६२२ रामचरित मानस। चौ०-प्रभु पद-पङ्कज नावहिं सीखा । गर्जहिं मालु महाबल कीसा ॥ देखी राम सकल कपि सैना । चितइ छपा करि राजिव-नैना ॥१॥ प्रभु रामचन्द्रजी के चरण-कमलों में मस्तक नवाते हैं और महापली वानर मालु गर्जना करते हैं। रामचन्द्रजी ने सब वानरीसेना को देखा और कमल नयनों से कृपा कर उनकी ओर अवलोकन किया ॥१॥ राम कृपा बल. पाइ कपिन्दा । भये पच्छजुत मनहुँ गिरिन्दा ॥ हरषि राम तब कीन्ह पयाना । सगुन भये सुन्दर सुम नाना ॥२॥ रामचन्द्रजी की कृपा का बल पा कर वे सेनापति वन्दर ऐसे मालूम होते हैं मानों पक्ष सहित पर्वतराज हो । तव रामचन्द्रजी ने प्रसन्नता से पयान किया, नाना प्रकार के कल्याण- सूचक सुन्दर सगुन हुए ॥२॥ जासु सकल मङ्गल-मय कीती । तासु पयान सगुन यह नीती ॥ पशु पयान बैदेही । फरकि बाम अंग कहि देही ॥३॥ जिनकी कीर्ति सम्पूर्ण मङ्गलों से भरी है-उनके पयान में सगुनों का वर्णन यह नीति है। प्रभु के प्रस्थान को जानकीजी जान गई, ऐसा मालूम होता है मानों वायाँ श्रङ्ग फड़क कर उनसे कहे देता हो ॥३॥ स्त्री के वाम अङ्गका फड़कना कल्याण सूचक है। इससे स्वामी के प्रस्थान का अनुमान होना ठीक ही है, परन्तु अङ्गों को जीभ नहीं जिससे वे कहते हों यह कवि की कल्पना मात्र 'अनुक्तविषया वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार' है। जोइ जोइ सगुन जानकिहि होई । असगुन भयउ रावनहिँ साई ॥ चला कटक को बरनइ पारा । गर्जहिँ बानर भालु अपारा ॥४॥ जो जो सगुन जानकीजी को हुए, वही गवण को असगुन हुए । अपार सेना चली, उसका वर्णन कर कौन पार पा सकता है ? ( उत्साह से भरे हुए) वानर भालू अपार गर्जना जो जो भङ्ग जानकोजी के फड़के, वही वही अङ्ग रावण के भी फड़के। वस्तु एक ही पर एक के लिये सगुन और दूसरे को असगुन होना 'प्रथम व्याधात अलंकार' है। ज्योतिष के मत से स्त्री का वाम श्रङ्ग फड़कना शुभ और पुरुष के लिये अशुभ माना जाता है। नख आयुध गिरि पादप धारी । चले गगन महि इच्छाचारी ॥ केहरिनाद भालु कपि करहीं । डगमगाह दिग्गज चिक्करहीं ॥५॥ जिनके नख ही हथियार हैं, पर्वत और वृक्षों को लिये हुए आकाश तथा धरती पर अपनी अपनी इच्छा के अनुसार (रास्ते से) चले । धानर-भालू सिंह के समान शब्द करते जाते हैं, दिशाओं के हाथी विचलित होकर चिग्घाड़ते हैं ॥५॥ बिना आधार के वानरों का आकाश मार्ग से गमन करना प्रथम विशेष अलंकार' है। करते हैं |