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पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/१७

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  • शाहीमहलसरा*

१६ वक्त मिल जयागा, जब तुम इल कावरून को खपा डालोगे।" दूसरा,-"लेकिनबगैर पेश्तर इनाम लिये, मैं ऐसा खतरनाक काम हर्गिज़ न करूंगा,जिस में अपनी जान का भी खौफ लगा हुआहै।" एक," आह, तुम इस बेशकीमत वक्त को नाइक जाया कर दुसरा,-अफ़सोस,तू मुझे कहां ले आई है ! आह! आंखों पर पट्टी बँधी रहने के सवत्र यह मैं नहीं जान सकता कि मैं किस शकल चाली के साथ किस मुकाम पर आया हूं! तू मुझे चक देकर अपना काम निकाला चाहती है। क्यों,जब तू मुझे अन्धों की तरह इल घर के बाहर कर देगी, तो फिर क्या मुझे इनाम देने के लिये मेरे पास आएगी ? ६र्गिज नहीं; इस वास्ते वगैर इनाम लिये मैं इस खतरनाक काम में कदम न रखंगा । मैं इनाम से वाजाया, पस, जल्द मुझे या से रिहा कर और अपने काम के लिये किसी दूसरे । रुस को ढूंढ़ । नाजरीन! यह सुनकर वह पहिला शरुत कुछ झलाया और तब मैंने जाना कि वह पदकार आसमानी है और मुझे महलके बाहर ले जाकर मरवा डालने के लिये यह किसी भाड़े के स्टू को बाहर से ले आई है ! लेकिन वह टट्टू विल्कुश दुजदिल था, या यों कहूँ कि चालाक भी था । आह, यह मौका आसमानो के वास्ते बहुत ग़मीमत था, लेकिन मैं समझता हूं कि लालच में आकर वह मुफ्तही में अपना काम निकालना चाहती थी और उसके एवज़ में एक कौड़ी भी इनाम नहीं दिया चाहती थी। मैं समझता हूं कि उस शाम ने उसकी चालाकी बलवी समझ ली थी, इसी से वह इना के बगैर पाए, उसके खातिर खाह काम करने पर राजी नहीं होता था । हां, तो जल शाल की वैसी बात सुनकर आसमानी झल्ला उठी और कड़क कर वाली,"शैतान के बचे ! अगर तूने मेरे हुक्म बमूजिब काम न किया तो वहां ले हर्गिज़ बाहर न निकलने पाएगा और कुत्ते को मौत मारा जायगा ।