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पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/७५

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  • शादीमहलसरा *

___ बर:--- पर और मारा ! अब !मला उतनी मजाल है कि मैं दाज हो? मैंने कहा- शुद स्तर झाले इतनी मुहब्बत बदर थी और कहा अम आज बासौं ही बातो तुम मुझ से इतनी अलग हो रही है। उसने कहा, "मैंले ! क्या मैंने अपने मत बढ़ाई हो ! अश्याज अल्लाह ! यहार कह क्या है ? मैं--ौकत क्या तुम पदम थी,बह कोई दूसरी ही जानी थी, जिसने ऐरतर, जबकि में गोल इमारत यो हारबन कर पेश्तर तो मुझ से खूध मुहब्बत कालाई थी, लेकिन अब उस के कहने वमूजिय दिलाराम को तलाक देना मजर न किया और घह झंझला कर और शुद्धो डरा धमका खफा होकर जली पानी 10 मेरी बात सुनकर उसके चहरे दबाई बदले और उसने बड़े तजभ ले कहा--ओहो, अब मैं समतलब समझ गई ! आहा यूस्खफा तुमने भई बड़ा भारी घोला लाया क्योंकि वहनिगम थीं। मैंने ताजवले कहा, --- या ले तुम्हारी मलकाकी सूरत मकर आई हो, वैखेही तुम्हारी सूरत भी किसी औरने धाले में डालने के लिये ही किया गया था. --RAT RATEE . उस तुमसे मेरी ar क्या बात हुई थी और तुम्हारसूरत पाली मार के साथ व्या" साई;-- जपक मेरे लाय तो आपको भी याद नहीं हुई थी. फिलहान मापसे हो सोका शुसार हाल में हमादकरतो हूँ यही ठी लममाती दिनमा पानी पीली भी न थी।