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पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/८३

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शाहोमहलसरा* मैं काजो जमालुद्दीनके घर वलकर तुम्हारे साथ निकाह करूंगा और बाद इसके देहली मे चलकर रहूंगा।" वह बोली,-"नहीं, देहली में रहना ठीक नहीं ! क्योंकि हमारे तुम्हारे गायक होने पर मलका मेरी और आसमानी तुम्हारी तलारामें तमाम दुनियां छान डालेगी। अल, देहली आगरे का ख्याल दिल से दूर करके किसी ऐसे शहर में चलकर कुछ रोज़तक इस तौर से अपने तई छिपाकर रहना चाहिये कि जिल में किसी को अपने पास जियादा दौलत होने का शत न रहे और किसी आफत मैं न फंसना पडे। इस मसलहल को सुनकर मैंने उसकी अकलमंदीको दिलही दिल में सराह और कहा,--“वेशक, तुम्हारा ख्याल बहुत दुरुस्त है और हम लोगों को अपनी हालतपर गौर करके ऐलाही करनामी चाहिये लेकिन बात यह है कि तब फिर में कुछ दिनों तक मुखबिरी भी न करूंगा; क्योंकि इससे जल्द गिरफ्तार होजाने का डर बना रहेगा और धरौर रोजगार के भी किसी नए शहर में रहत्या अपने सर पर बला लेनी है।" . जोहरा ने कहा, "यह तो सही है, लेकिन इससे क्या ? तुम दूसरा पेशा करना !" .. मैंने कहा,..."दूसरा पेशा मैं जानता नहीं 12 यह सुनकर जोहरा खिलखिला उठी और कहने लगी,--"दुसरा पेशा मैं बतलाती हूं--तुम दरजी की दुकान करना ! " यह सुनकर मुझे हंसी आगई और मैंने उसकी तरफ देखकर कहा,-"वल्लाह,पेशा तो रस्य तजवीज किया तुमने नतीजा इसका यह होगा कि लोगों को मुझपर बहुत जल्द शक होजायगा।" जोहरा धोली,-"कुछ न होगा, मैं सीना जानती व; एस, तुम्हारा काम मैं कर गौ और उम्मीद करतीहूं कि तुमको भी मैं बहुत जल्द इस फन में होशियार कर दुगो । क्यों कि इनसान को चाहिये कि गर्दिश के दिनों को आसानी से काटने के लिये वह कई हुनरों में पहिले ही से जानकारी रक्खे और एक ही हुनरपर मौकूफ न रक्खे