पृष्ठ:लवंगलता.djvu/६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६०
[दसवां
लवङ्गलता


सिराजुद्दौला को यह बात सुन लवंगलता पुक्का राडकर रोने लगी, और यहा तक वह राई कि सिराजुदोला बन ही घबरा गया जितना ही वह उसे समझाता, वह उतना हा अधिक रोने लगती' निदान, एक घटे में वह किग्मी किनी तरह उप हुई और अपनी कमर मे से एक पुरजा निकाल कर उसने सिराजुद्दौला के आगे फेक दिया और कहा,—

"देखिए, हज़त! जरा गौर से इसे पढिए। बस, ये ही लोग मुझे पकड़ लाने के लिये यहांसे भेजे गए थे न?

उस काग़ज़ को देखकर, समे लवगलता ने उस जंगल मे नज़ीरखा इत्यादि के नाम लिख लिए थे, कहा,—"हां, बेशक, ये ही लोग तेरे लाने के लिये भेजे गए थे, मगर यह फेहरिस्त तू मुझे क्यो दिखाती है

लवंग॰—साहब असल बात तो यह है कि मैं बहुत दिनों से आप पर मरती हूं, मगर मेरी हिम्मत नही पडती थी कि मै खुद आपके पास आतो या कोई खत लिखती! खैर, जब नज़ीरखा ने तस्वीरवाली के भेल मे मुझमे मिलकर आपका खत मुझे दिया था, उसी वक्त मै खुशी खुशी उसके साथ हुई थी, लेकिन, अफ़सोस, उम नमकहराम, दोज़खी कुत्ते ने मुझे एक जगल में लेजाकर मुझपर ऐसा जुल्म किया कि हाय ' मैं तो उसी वक्त मर चुकी थी, मगरक्षउसके साथियों ने उसकी मदद को और मुझे मरने न दिया।

फिर पीछे उसने मेरी बडी आधु मिन्नत की और इस राज को आग पर जाहिर न करने की मुझसे कममे ले ली। आखिर, लानारी से मै उस वक्त चुप होगई और किली हिक्मत से मैंने उन सब गाजियो के नाम लिख लिए जिन्होने बदज़ात नजीर की मदद की थी। अब हुजूर गौर करें कि अब मै क्या करू, कहां जाऊ और क्योकर अपनी जिन्दगी रक्खें। जब कि उस हरामनादे ने मुझे आपके लायक न छोडा मला, यह कभी मुमकिन है कि मै आपकी तस्वीर की बेईजतो करती ' अगर मै खुद यहां न आना चाहती तो एक नजीर तो वा आप अपनी नारी फ़ौज लेकर भी मुझे यहां तक नहीं लामकने थे। गरज यह कि उसने जो कुछ आप सिर्फ अपना पब छिपाने के लिये सरासर झूठ कहा; जिसमे आप मेरे कहने पर यकीन न करे और वह गुनहगार बेदाग