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पृष्ठ:लिली.pdf/१४२

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१४२ लिली धुवाँ देती हुई लकड़ी को हवा लगी, वह जल उठी। रानी साहिबा ने उसी वक्त स्याही को एक नौकर से पकड़ लाने के लिये कहने को भेज दिया। स्थाही पुलकित होकर बूटासिह के पास गई । बूटासिंह से उसकी भाशनाई थी । बोली, "सरकार कहती हैं, हिरनी का झोंटा पकड़कर ले आयो, अभी ले आओ, बहुत जल्द !" बूटासिंह जब गया, तब हिरनी बालिका के लिये वैद्य की दी एक दवा अपने दूध में घोल रही थी। बुटासिंह को मतलब सम- झाने के लिये तो कहा नहीं गया था। उसने झोंटा पकड़कर' खींचते हुए कहा, "चल, सरकार बुलाती हैं।" प्रार्थना की करुण चितवन से बूटासिंह को देखती हुई हिरनी बोली-'कुछ देर के लिये छोड़ दो, मयना को दवा पिला दूं।" घसीटता हुआ बूटासिंह बोला, "लौटकर दवा पिला चाहे जहर, सरकार ने इसी वक्त बुलाया है।" स्याही साथ लेकर ऊपर गई । हिरनी रानी साहिबा की मुद्रा तथा कर चितवन देखकर काँपने लगी। रानी साहिबा ने हिरनी को पास पकड़ लाने के लिये स्याही से कहा, स्याही ने जोर से खींचा, पर हिरनी का हाथ छूट गया, जिससे वह गिर गई, हाथ मोच खाकर उत्तर गया । रानी साहिया क्रोध से काँपने लगी। दूसरी दासियों को पकड़ लाने के लिये भेजा। इच्छा थी कि उसका सर दबाकर -