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पद्मा और लिली


"बुखार बड़े ज़ोर का है, अभी तो कुछ कहा नहीं जा सकता, जिस्म की हालत अच्छी नहीं, पूछने से कोई जवाब भी नहीं देती। कल तक अच्छी थी, आज एकाएक इतने ज़ोर का बुखार, क्या सबब है?" डॉक्टर ने प्रश्न की दृष्टि से रामेश्वरजी की तरफ़ देखा।

रामेश्वरजी पत्नी की तरफ़ देखने लगे।

डॉक्टर ने कहा--"अच्छा। मैं एक नुस्खा लिखे देता हूँ, इससे जिस्म की हालत अच्छी रहेगी। थोड़ी सी बर्फ़ मँगा लीजिएगा। आइस-बैग तो क्यों होगा आपके यहाँ । एक नौकर मेरे साथ भेज दीजिए, मैं दे दूँगा। इस वक्त एक सौ चार डिग्री बुखार है। बर्फ़ डालकर सिर पर राखिएगा। एक सौ एक तक आ जाय, तब ज़रूरत नहीं।"

डॉक्टर चले गए। रामेश्वरजी ने अपनी पत्नी से कहा-- "यह एक दूसरा फ़साद खड़ा हुआ। न तो कुछ कहते बनता है, न करते। मैं क़ौम की भलाई चाहता था, अब खुद ही नकटों का सरताज हो रहा हूँ। हम लोगों में अभी तक यह बात न थी कि ब्राह्मण की लड़की का किसी क्षत्रिय-लड़के से विवाह होता। हाँ, ऊँचे कुल की लड़कियाँ ब्राह्मणों के नीचे कुलों में गई हैं। लेकिन, यह सब आखिर क़ौम ही में हुआ है।"

"तो क्या किया जाय?" स्फारित, स्फुरित आँखें, पत्नी ने पूछा।

"जज साहब से ही इसकी बचत पूछूँगा। मेरी अक़्ल अब और नहीं पहुँचती।—अरे छीटा!"