युवती की जबान से उसने नहीं सुनी । वह जानता था, यह सब अखबारों का आंदोलन है। इस तरह की कल्पना भी उसने कभी नहीं की। कारण वह कान्यकुब्जों के एक श्रेष्ठ कुल में पैदा हुआ था। युवती की बातों से घबरा गया ।
"लीजिए ।” युवती ने कई बीड़े दिए ।
"आप बुरा मन मानिएगा, मैं आपको देख रही थी कि माप कितने दर्दमंद हैं !” युवती ने साधारण आवाज में कहा ।
युवक ने पान ले लिए, पर लिए ही बैठा रहा । “खाइए," युवती ने कहा--आपसे एक बात पूछू ?"
'पूछिए ।"
"अगर आपसे कोई विधवा-विवाह करने के लिये कहे ?" युवती मुस्किराई।
"मैं नहीं जानता, यह तो पिताजी के हाथ की बात है।" युवक झेप गया।
"अगर पिताजी की जगह आप ही अपने मुख्ताराम होते?"
संकुचित होकर, फिर हिम्मत बाँधकर युवक ने कहा- मुझे विधवा-विवाह करते हुए लाज लगती है।"
युवती, मनोभावों को दबाकर, छलछलाई आँखों चुप रहीं। एक बार उसी तरह युवक को देखा, फिर मस्तक झुका लिया।
दूसरे दिन युवक पर चलने लगा। मकान की जेठी स्त्रियों