- लिली से प्रार्थना करने लगे-"आपने हमारा पूरा-पूरा उद्धार किया है। अब इतनी कृपा और कीजिए कि इस मामले का भेद कहीं खुलने न पावे, नहीं तो हम किसी तरक के न रहेंगे।" रमाशंकर की भी पिता के शब्दों से सहानु- भूति थी। राजकिशोर पृथ्वी की तरफ देख रहा था। आँखों से आँसुओं की बड़ी-बड़ी बूंदें टपक रही थी। कुछ सँभलकर कहा-नही वाजपेयीजी, आप निश्चित रहिए। जैसी हमारी इञ्जित, वैसी ही आपकी है।" पं० रामचंद्रजी घर गए, तो देखते हैं, उनके जाने से पहले गाँव-भर में उनकी बहू और बेटी की मुसलमान के घर रहनेवाली खबर फैल चुकी है। घर में उन्हों के सगे भाई ने कहा कि घर में अभी भापका रहना नहीं हो सकता, क्योंकि आपके पीछे हस बेधरम तो हो नहीं सकते, हमारे भी छोटे- छोटे बच्चे हैं, उनके भी जनेऊ और ब्याह हमें करने हैं, सब लोग हमें छोड़ देंगे, वो हम सिर्फ आपको लेकर करेंगे क्या ?--आप तब तक दोरवाले घर में रहिए, हम भैया- चारों को बुला लाते हैं। पं० रामचंद्र और रमाशंकर बड़े घबराए, पर उपाय न था। ढोरवाले घर में गए। शाम को भैयाचारों का जमाव हुआ । सबने राय दी कि तुम लोग गधे बन गए हो, अब