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पृष्ठ:लिली.pdf/९६

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लिली । प्रणाम किया । पर पैसे न चढ़ाए।थे ही नहीं। गृहस्थ और पैसे न चढ़ाए। एक बाबाजी वैठे थे, गालियाँ देने लगे । चुप- चाप, कुछ देर भी विश्राम किए बिना, लौटा। महावीरजी की सहायता से विश्व-समाद भगवान श्रीरामचंद्रजी से वह पैसे माँगने गया था, चढ़ाने नहीं ! थका हुआ, सीढ़ियाँ उतरने लगा। सावन की सजल दिगंत तक फैली हुई श्याम शोभा राममयी हो रही थी, शीतल सुख-स्पर्श वर्षा-समीर बह रही थी, पर उसके हृदय की आग इससे और जल-जल उठने लगी। इतने जल में भी मुख सूख गया। नदी के किनारे दीन भाव से आकर खड़ा हुआ। अब को मल्लाह ने स्वयं दया की। पार उतर- कर रामकुमार कामद-गिरि की परिक्रमा करने लगा। पहाड़ पर मोरों के झुण्ड निर्भय नृत्य कर रहे थे। बड़े-बड़े पेड़ वा के झोंकों से लहरा लहराकर कह रहे थे, 'हम पूर्ण हैं, हमें कुछ भी न चाहिए।' एक जगह लोगों से उसने पूछा, 'भगवान् के इस गिरि पर क्या है ? लोगों ने कहा, 'इस पर भगवान स्वयं रहते हैं, ऊपर एक बड़ा-सा सरोबर है, उसके किनारे उनको कुटी है, वहीं सीताजी और लक्ष्मणजी के साथ वह निरंतर तपस्या करते हुए भक्तों की मनोवांछाएँ पूरी करते रहते हैं।' रामकुमार ने श्राग्रह से फिर पूछा, 'वहाँ दर्शन के लिये जाने की मनाही क्यों है ? उत्तर मिला, वहाँ जाने से भी दशन नहीं हो सकते, भगवान, सरोवर, कुटी, सब लुप्त हो जाता है।' रामकुमार को बड़ा तअज्जुब हुआ। उसने निश्चय किया, लोग