पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/६१

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फिरे, तो उसे कभी राजा नहीं मिलेगा। कारण यह है कि राजा तो वह स्वयं है। वह अपने राज्य में गाँव गाँव फिरे, घर घर ढूँढ़े, चारों और रोता चिल्लाता फिरे, पर राजा उसे न मिलेगा। कारण यह है कि राजा तो वह आप ही है। यह अच्छा है कि आप हमें जान जायँ कि हम ईश्वर हैं और उसे व्यर्थ ढूँढ़ने की बात छोड़ दें। यह जानकर कि हम ईश्वर हैं, हमें सुख और शांति मिलेगी। यह सब पागलपन की बात त्यागो और विश्व में अपना नाट्य,जैसे रंगभूमि में नट अपने खेल करते हैं, करो।

सारा दृश्य बदल जाता है और यह संसार नित्य का बंदी- गृह न होकर रंगभूमि बन जाता है। स्पर्धा का लोक होने के स्थान में यही आनंद का लोक हो जाता है, जहाँ सदा वसंत ऋतु बनी है, फूल खिल रहे हैं और भ्रमर गुंजार कर रहे हैं। यही संसार जो पहले नरक था, अब स्वर्ग हो जाता है। बद्ध पुरुषों की दृष्टि में यह घोर दुःख का स्थान दिखाई पड़ता है, पर मुक्त पुरुष की आँखों में वही कुछ और ही देख पड़ता है। यह एक जीवन विश्व का जीवन देता है; स्वर्गादिलोक सब यही है। मनुष्य के आदर्श सब देवता यहाँ हैं। देवताओं ने मनुष्य को अपनी अनुहार पर नहीं रचा,अपितु मनुष्य ने देवताओं की रचना की। और यही आदर्श है, यही इंद्र है, यही वरुण है और विश्व के सारे देवता यहीं हैं। हम ही तो अपने क्षुद्र भ्रमों को बाहर लाए हुए थे, हम ही तो इन देवताओं के मूल हैं, हम ही तो सत्य हैं, हम ही पूजनीय देवता हैं। यही वेदांत का विचार