पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/७७

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आवश्यक नहीं है कि हमारी जाँच तर्क से की जाय। यदि कोई तर्क से ठीक काम न ले, तो उचित निर्णय हो ही नहीं सकता। और बातों की तो कथा ही क्या, धर्म में भी ऐसा होना असंभव है। एक धर्म किसी महा घृणित कर्म करने की आज्ञा दे सकता है। उदाहरण के लिये मुसलमान धर्म को ले लीजिए। उसमें आज्ञा है कि विरुद्ध धर्मवालों को मारो। कुरान में यह स्पष्ट कहा गया है कि काफिरों को, अगर मुसलमान न हों तो, कतल करो। उन्हें आग में डालो और तलवार के नीचे करो। अब यदि किसी मुसलमान से कहा जाय कि यह ठीक नहीं है तो वह यह प्रश्न कर सकता है कि यह आप कैसे जानते हैं? आपको इसका ज्ञान हुआ कि यह ठीक नहीं है? मेरी पुस्तक में तो ऐसी ही आज्ञा है। यदि आप कहें कि हमारी पुस्तक पुरानी है, तो बौद्ध लोग आकर कहते हैं कि हमारी पुस्तक कहीं पुरानी है। फिर हिंदू भाकर कहते हैं कि हमारी पुस्तक सबसे पुरानी है। अतः पुस्तक के आधार पर निर्णय करना ठीक नहीं है। फिर वह आधार कौन है जिस पर जाँच करेंगे? ईसाई कहेंगे कि पर्वत पर की शिक्षा को देखो; मुसलमान कहेगा, कुरान के उपदेश पर ध्यान दो। मुसलमान कहेंगे कि इस विषय में मध्यस्थ कौन होगा कि हम दोनों में कौन अच्छा है? मध्यस्थ तो न कुरान हो सकता है न इंजील; कारण यह कि इन्हीं दोनों में विवाद है। कोई स्वतंत्र कसौटी होनी चाहिए और वह पुस्तक न होनी चाहिए, पर ऐसी होनी चाहिए जो व्यापक हो। फिर