पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/१६

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कर्मयोग
१९
 

उससे शक्ति तुममें लौटकर नहीं आ सकती, परन्तु यदि स्वेच्छानिरोध किया जाय तो शक्ति बढ़ेगी। इस प्रकार के निरोध से वह मनःशक्ति उत्पन्न होगी, वह चरित्र बनेगा जिससे एक ईसा ईसा और एक बुद्ध बुद्ध होता है। मूढ़धी यह रहस्य नहीं जानते; फिर भी वे मनुष्य-जाति पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहते हैं। मूर्ख यह नहीं जानता है कि वह भी यदि कर्म करे और प्रतीक्षा करे, तो समस्त संसार का स्वामी हो सकता है। कुछ दिन धैर्य रखिये, स्वामीत्व के क्षुद्र विचार का निरोध कीजिये; जब वह विचार पूर्णत: चला जायगा तब आपकी इच्छा-शक्ति से ब्रह्माण्ड शासित होगा। मनुष्य चार पैसे के पीछे अंधा बना घूमता है और उन क्षुद्र चार पैसों के लिये अपने भाई मनुष्य को धोखा देने में तनिक भी आगा-पीछा नहीं करता! परंतु यदि वह धैर्य धारण करे, तो वह ऐसा चरित्र वना सकता है कि इच्छा करने पर करोड़ों अपने पास बुला सके। परंतु हम सब ऐसे ही मूर्ख हैं। हममें से अधिकांश की कुछ दिनों के आगे दृष्टि नहीं पहुँचती जैसे कि कुछ पशु दो-चार क़दम के आगे नहीं देख सकते। एक छोटा-सा वृत्त-यही हमारा संसार है। उसकी क्षितिज पारकर देखने का हममें धैर्य नहीं और हम पापी और अनाचारी हो जाते हैं। यही हमारी शक्तिहीनता, निर्बलता है।

छोटे-से-छोटे कामों से भी नाक-भौं न सिकोड़ना चाहिये। मनुष्य अपने स्वार्थ के लिये, धन और यश के ही लिये काम करे,