पृष्ठ:वीरेंदर भाटिया चयनित कविताएँ.pdf/२१

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उसे खराब होना कहते हैं महोदय

उसने पकड़ी मेरी बात
कहा
सब्जी सड़ जाती है जैसे
वैसे ही
सड़ जाता है समाज भी
सड़ जाता है धर्म भी
सड़ जाते हैं वाद भी
हमें लेकिन बास नहीं आती

मालूम है क्यों?
क्योंकि
सड़ी हुई चीजो का अनुकूलन
कीड़ो के लिए होता है।

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 21