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घर पोत गए
सब हरा हरा दिखने लगा साहब
जनरेटर उठा लाये वे
कूलर ले आये
खाना भी ले आये
पत्तल-दोना सब था उनके पास
पानी भी था अलग
ठंडा और साफ
उन्होंने खुद किया सब इन्तजाम
मैंने नहीं छुआ कुछ भी
न उन्हें, न उनका खाना न उनके बर्तन
वे मुझसे बतियाये भी नहीं साहब
बस खाये
खाते रहे
मेरे सामने फेंका कुल्ले का पानी
और हाथ धो कर चले गए
मुझे तो यह भी नहीं पता साहब
वे क्यो आये थे
तुम ही बता दो साहब
वे अपनी भात
मेरे घर बैठकर क्यों खा कर गए
वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 33