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कि तुम्हारी रोटी में
गरीब का खून टपकता है सेठ
पूंजी की चिरोरियों के दौर जबकि तब भी थे
उस दौर में
उन समयों में
जब संविधान कोई परिकल्पना नहीं थी
बोलना अधिकार ना था
अभिव्यक्ति शब्द गर्भ मे भी आया नहीं था
उस दौर में बोल रहे थे आप
कि सूर्य को अगर पहुँच सकता है जल
तो सुदूर मेरे खेतों को भी
अवश्य ही पहुच॑ सकता है पानी
बोल रहे थे आप बेझिझक
कि पत्थर पूजे रब मिले
तो मैं पूजूँ पहाड़
सच! कैसे लोग थे आप?
कैसे लोग थे आप
जिन्होंने पैर से नापी दुनिया
अवतार की अवधारणा को नष्ट करते हुए
कैसे लोग थे आप
जिन्होंने खण्डी में उकेर दिए संघर्ष
और कहा
वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 54