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आह! अब मुझे बनारस नहीं जाना

देखना था जो धर्म का उत्कर्ष
पाप पुण्य का विमर्श
काशी का आकर्ष
कबीरी का तर्क
नानक के सौहार्द्र का मर्म
अब नहीं देखना

मन अब बहुत उदास हो गया है

मन अब
मगहर जाना चाहता है
कबीर से मिलना चाहता है
पूछना चाहता है
आप काशी से विरक्त क्यों हुए कबीर
कितने साहस से आपने
मोक्ष तक की गाथा व्यर्थ करार दे दी

मुझे पूछना है कबीर से
जो राजा होने की अभीप्सा लिए
बार बार आता है बनारस
वह और कितना राजा होना चाहता है

मुझे पूछना है कबीर से
एक राजा को
अपने प्रपंच की व्यर्थता का बोध कब होता है

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 78