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पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/२४०

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"जैतवन भेंट कर दिया! क्या कहते हो लौहित्य!"

"सत्य कहता हूं आचार्य!"

"जैत राजकुमार ने जैतवन बेच दिया?"

"वे नहीं देना चाहते थे, पर सुदत्त ने जैतवन की सम्पूर्ण भूमि पर स्वर्ण बिछाकर उसे क्रय कर लिया आचार्य! अठारह करोड़ स्वर्ण दिया उसने।"

"तो यों कहो, जैत राजकुमार को एक भारी उत्कोच दिया गया।"

"यही तो बात है आचार्य। उसके तीन पोत स्वर्णद्वीप से स्वर्ण भरकर लौटे हैं। सुदत्त अनाथपिण्डिक के पास स्वर्ण की क्या कमी है! अब उसकी कीर्ति घर-घर गाई जा रही है, विशाखा का सप्तखण्डी मृगारमाता-प्रासाद धरा ही रह गया।"

"यह तो होना ही था। फिर राजकुमार जैत की इस पर कृपादृष्टि।"

"जैत ही की क्यों पायासी, गौतम शाक्य की भी कहो। यही देख लो, राजमहिषी मल्लिका अब यहां नहीं आतीं। सुना है, उन पर इस गौतम का अच्छा रंग चढ़ा है।"

"इसमें क्या आश्चर्य है! माली की बेटी अपने रूप के कारण बनी कोसल पट्टराजमहिषी, सो वह रूप की दुपहरी तो कब की ढल गई। महाराज प्रसेनजित् को नित-नये यौवनों से फुर्सत नहीं। उनकी विगलित वासना को राजगृह का वह तरुण वैद्य अपने वाजीकरण से पूर्ण नहीं कर सका। अब वह चार्वाकपन्थी माण्डव्य अपने रसायन का चमत्कार दिखाना चाह रहा है।"

"साकेत के उस पाजी वृहस्पति चार्वाक के चेले की बात कह रहे हो? बड़ा घृणित है वह ब्राह्मण-कुलकलंक। हां, तो उसने राजा को खूब भरमा रखा है?"

"जी हां, वह यही तो कहता है कि इन्द्रियों को तृप्त होकर अपने-अपने विषयों को भोगने दो, यथेष्ट आनन्द करो।"

"और उस धूर्त ने राजा को कुछ रसायन दी है?"

"जी हां, सो जैसे सूखा ईंधन अनुकूल वायु पाकर धांय-धांय जलता है, वैसे ही उस अतृप्त कामाग्नि में राजा भी जलकर राख हो जाएगा। इस सत्तर वर्ष की अवस्था में वह गांधारी कलिंगसेना से विवाह करने जा रहा है। उधर विदूडभ राजपुत्र उसे मारकर कोसल के सिंहासन को हथियाने का षड्यन्त्र रच रहा है।"

"यह क्या कहते हो पायासी सौम्य? राजकुमार विदूडभ!"

"हां, आचार्य! शाक्यों ने जब से उसको दासीपुत्र कहकर अपमानित किया है, वह महाराज से घोर घृणा करता है। वह कहता है, जब माली की लड़की मल्लिका को उन्होंने पट्टराजमहिषी का पद दिया, तो उसकी माता शाक्यदासी नन्दिनी को क्यों दासी ही रहने दिया? शाक्यों से अनादृत होकर वह और भी क्रुद्ध हो उठा है।"

"उसका यह कथन अयथार्थ तो नहीं है प्रिय! पर सत्य जानो, ये दासीपुत्र उन सभी बूढ़े कामुक राजाओं को डुबोएंगे। तो विदूडभ तो शाक्य गौतम से भी घृणा करता होगा?"

"उसका वश चले तो वह उसे मार ही डाले। पर उसका वह मित्र..."

"कौन?"

"राजगृह का वह तरुण वैद्य। वह उस शाक्य गौतम का परम भक्त है। आजकल वह उसका बहुत घनिष्ठ हो रहा है।"