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पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३२

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दासी बने? यही क्यों धर्म है देवी अम्बपाली? समय पाकर रूढ़ियां ही धर्म का रूप धारण कर लेती हैं और कापुरुष उन्हीं की लीक पीटते हैं। स्त्री अपना तन-मन प्रचलित रूढ़ि के आधार पर एक पुरुष को सौंपकर उसकी दासी बन जाती है और अपनी इच्छा, अपना जीवन उसी में लगा देती है। वह तो साधारण जीवन है। पर देवी अम्बपाली, तुम असाधारण स्त्री-रत्न हो, तुम्हारा जीवन भी असाधारण ही होना चाहिए।"

"तो इसीलिए वैशाली का राष्ट्र मेरी देह को आक्रान्त किया चाहता है? क्यों?" अम्बपाली ने होंठ चबाकर कहा।

"इसीलिए," वृद्ध गणपति ने स्थिर मुद्रा में कहा, "देवी अम्बपाली, वैशाली का जनपद अप्रतिम सप्तभूमि प्रासाद, नौ कोटि स्वर्णभार और प्रासाद की सब सज्जा, रत्न, वस्त्र और साधन, तुम्हें दे रहा है––तुम्हें दुर्ग में सम्राट की भांति शासक रहने की प्रतिष्ठा दे रहा है। यह सब प्रतिष्ठा है देवी अम्बपाली, जो आज तक वज्जीसंघ के अष्टकुलों में से किसी गण को, यहां तक कि गणपति को भी प्राप्त नहीं हुई। अब और तुम चाहती क्या हो?"

"तो यह मेरा मूल्य ही है न? इसे लेकर मैं देह वैशाली जनपद के अर्पण कर दूं, आप यही तो कहने आए हैं?"

"निस्संदेह, मेरे आने का यही अभिप्राय है। देवी अम्बपाली, किन्तु अभी जो तुम्हें अटूट सम्पदा मिल रही है, यही तुम्हारा मूल्य नहीं है। यह तो उसका एक क्षुद्र भाग है। विश्व की बड़ी-बड़ी सम्पदाएं और बड़े-बड़े सम्राटों के मस्तक तुम्हारे चरणों पर आ गिरेंगे। तुम स्वर्ण, रत्न, प्रतिष्ठा और श्री से लद जाओगी। इस सौभाग्य को, इस अवसर को मत जाने दो, देवी अम्बपाली!"

"तो आप यह एक सौदा कर रहे हैं? किन्तु यदि मैं यह कहूं कि मैं अपनी देह का सौदा नहीं करना चाहती, मैं हृदय को बाज़ार में नहीं रख सकती, तब आप क्या कहेंगे?" अम्बपाली ने वक्रदृष्टि से वृद्ध गणपति को देखकर कहा।

गणपति ने संयत स्वर में कहा––"मैं केवल सौदा ही नहीं कर रहा हूं देवी, मैं तुमसे कुछ बलिदान भी चाहता हूं, जनपद-कल्याण के नाते। सोचो तो, इस समय वैशाली का जनपद किस प्रकार चारों ओर से संकट में घिरा हुआ है! शत्रु उसे ध्वस्त करने का मौका ताक रहे हैं और अब तुम्ही एक ऐसी केन्द्रित शक्ति बन सकती हो जिसके संकेत पर वैशाली जनपद के सेट्ठिपुत्रों और सामन्त पुत्रों की क्रियाशक्ति अवलम्बित होगी। तुम्हीं उनमें आशा, आनन्द, उत्साह और उमंग भर सकोगी। तुम्हीं इन तरुणों को एक सूत्र में बांध सकोगी। वैशाली के तरुण तुम्हारे एक संकेत से, एक स्निग्ध कटाक्ष से वह कार्य कर सकेंगे जो अष्टकुल का गणसंघ तथा संथागार के सम्पूर्ण राजपुरुष मिलकर भी नहीं कर सकते।"

वृद्ध गणपति इतना कहकर घुटनों के बल धरती पर झुक गए। उन्होंने आंखों में आंसू भरकर कहा––"देवी अम्बपाली, मैं जानता हूं कि तुम्हारे हृदय में एक ज्वाला जल रही है। परन्तु देवी, तुम वैशाली के स्वतन्त्र जनपद को बचा लो, नहीं तो वह गृह-कलह करके अपने ही रक्त में डूबकर मर जाएगा। वह आज तुम्हारे जीवित शरीर की बलि चाहता है, वह उसे तुम दो। मैं समस्त बज्जियों के जनपद की ओर से तुमसे भीख मांगता हूं।"

अम्बपाली उठ खड़ी हुई। उसने कहा––"उठिए, भन्ते गणपति!" वह सीधी तनकर खड़ी हो गई। उसके नथुने फूल उठे, हाथों की मुट्ठियां बंध गईं। उसने कहा––"आइए आप,