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पृष्ठ:वैशेषिक दर्शन.djvu/१८

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आकाश।

भूत के बने हुए का संयोग हुआ। कभी कभी भिन्न भूतों से बने हुए वस्तुओं का संयोग देख पड़ता है। जैसे दूध में, तेल में, फलों के रस में पार्थिव और जलीय वस्तुओं का संयोग पाया जाता है। इन सब में पृथ्वी परमाणु जल में घुल कर जब जल परमाणु से वेष्टित हो जाते हैं तब जल परमाणु के उपष्टम्भ या जोर से पृथ्वी परमाणु में तेज के द्वारा भिन्न भिन्न प्रकार के रूप, रस, गंध इत्यादि उत्पन्न हो जाते हैं। यहां एक भेद झिरणावली में बतलाया है। उपष्टम्भक पांचों भूत हो सकते हैं। अर्थात् परमाणुओं के गुण परिवर्तन में पृथ्वी जल वायु सभी प्रवर्तक हो सकते हैं। परन्तु ऐसे परिवर्तन का निरोधक केवल पृथ्वी परमाणु हो सकता है।

(३) कुछ द्रव्यों के संयोग ऐसे हैं कि ये परमाणु तक नहीं जाते, केवल ऊपर ऊपर संयोग मात्र है। जैसे जब मांस जल में पकाया जाता है तव मांस के पृथ्वी परमाणु में या जल के परमाणु में कुछ भेद नहीं उत्पन्न होता है।

अग्नि के संयोग से परमाणुओं के गुण बदलते हैं। जहां प्रत्यक्ष अग्नि नहीं देख पड़ती वहां वस्तु के भीतर अग्नि है ऐसा सिद्धान्त वात्स्यायन का है (४-१-४७)। परन्तु किरणावली में सिद्धान्त किया है कि जहां जहां तेज के संयोग से गुण का परिवर्तन होता है तहां तहां सूर्य के किरणों ही का व्यापार मान लेना उचित है।

भिन्न भिन्न भूतों के बने हुए वस्तु जब मिलते हैं, जैसे पृथ्वी और जल फल के रस में, तब पृथ्वी परमाणु जल परमाणु से नहीं मिलते किन्तु एक पृथ्वी द्वयणुक एक जल द्वयणुक से संयुक्त होकर एक टुकड़ा हुआ, फिर ऐसे ही द्वयणुक के जोड़े बनकर एक दूसरे से संयुक्त हो जाते हैं। (प्रशस्तपाद, संयोग प्रकरण)।

आकाश।

पांचवां द्रव्य आकाश है। शब्द गुणवाले द्रव्य को आकाश कहते हैं। इसके गुण हैं शब्द, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग। शब्द एक गुण है। इससे यह किसी द्रव्य में रहेगा। जितने द्रव्य स्पर्श वाले हैं, जिनका स्पर्श हो सकता, जिनको हम छू सकते हैं, ऐसे द्रव्योँ का गुण शब्द नहीं हो सकता क्योंकि स्पर्श-