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पृष्ठ:शिवशम्भु के चिट्ठे.djvu/२६

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शिवशम्भु के चिट्ठे


गुण राजशक्ति का है। अत: आपके श्रीचरण-स्पर्शसे भारतभूमि तीर्थसे भी कुछ बढ़कर बन गई। आप गत मंगलवार को फिरसे भारत के राजसिंहासनपर सम्राट के प्रतिनिधि बनकर विराजमान हुए। भगवान आपका मंगल करे और इस पतित देशके मंगलकी इच्छा आपके हृदयमें उत्पन्न करे।

बम्बई में पांव रखते ही आपने अपने मन की कुछ बातें कह डाली हैं। यद्यपि बम्बई की म्यूनिसिपलिटीने वह बातें सुननेकी इच्छा अपने अभिनन्दन-पत्रमें प्रकाशित नहीं की थी, तथापि आपने बेपूछे ही कह डालीं। ठीक उसी प्रकार बिना बुलाये यह दीन भंगड़ ब्राह्मण शिवशम्भु शर्मा तीसरी बार अपना चिट्ठा लेकर आपकी सेवामें उपस्थित है। इसे भी प्रजाका प्रतिनिधि होने का दावा है। इसीसे यह राज-प्रतिनिधिके सम्मुख प्रजाका कच्चा चिट्ठा सुनाने आया है। आप सुनिये न सुनिये, यह सुनाकर ही जावेगा।

अवश्य ही इस देशकी प्रजाने इस दीन ब्राह्मणको अपनी सभामें बुलाकर कभी अपने प्रतिनिधि होने का टीका नहीं दिया और न कोई पट्टा ही लिख दिया है। आप जैसे बाजाबता राजप्रतिनिधि हैं, वैसा बाजाबता शिवशम्भु प्रजाका प्रतिनिधि नहीं है। आपको सम्राट ने बुलाकर अपना वैसराय फिर से बनाया। विलायती गजट में खबर निकली। वही खबरतार द्वारा भारतमें पहुंची। मार्ग में जगह-जगह स्वागत हुआ। बम्बईमें स्वागत हुआ। कलकत्तेमें कई बार गजट हुआ। रेलसे उतरे और राजसिंहासन पर बैठते समय दो बार सलामीकी तोपें सर हुईं। कितने ही राजा नवाब बेगम आपके दर्शनार्थ बम्बई पहुंचे। बाजे बजते रहे, फौजें सलामी देती रहीं। ऐसी एक भी सनद प्रजा-प्रतिनिधि होनेकी शिवशम्भु के पास नहीं है। तथापि वह इस देश की प्रजा का, यहां के चिथड़ापोश कंगालों का प्रतिनिधि होने का दावा रखता है। क्योंकि उसने इस भूमिमें जन्म लिया है। उसका शरीर भारत की मिट्टी से बना है और उसी मिट्टी में अपने शरीर की मिट्टी को एक दिन मिला देनेका इरादा रखता है। बचपनमें इसी देश की धूलमें लोटकर बड़ा हुआ, इसी भूमिके अन्न-जलसे उसकी प्राण-रक्षा होती है। इसी भूमि से कुछ आनन्द हासिल करने को उसे भंग की चन्द पत्तियां मिल जाती हैं। गांवमें उसका कोई झोंपड़ा नहीं है। इस पर भूमि-