पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२५९

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शिवसिंहसरोज

४० शिवसिंहसरोज समूह पर दावा नागलूथ पर सिंह सिरताज को । दावा पुलूस को पहारन के पूर पर पच्छिन के गन पर दावा जैसे बाज को | भूषन अखण्ड नत्र खंड महिंमंडल में तम पर दात्रा रविकिरल समाज को । उत्तर पाँह देस रुख दकिन माँझ जहाँ बादसाही तहाँ दावा सिवराज को ॥ २.॥ केतक देस जियो दल के बल दच्छिने चंगुल चापि के नाख्यो । रूप शुमान हयो गुजरात को सूरतको रस चूसि के चाख्यो ॥ पंजन मेति मलेच्छ मले दल सोई बच्यो जिहि दीन है भाख्यो। सौ रंग है सिवराज बलीजईि नौरंग में रंग एक न राज्यो ।।३। सज चतुरंग बीर रंग है सुरंग चदि सरजा सिबाजी जंग जीतन चलत है । धूषन भनत हद निनद नकीबन के नैननीर पद दिसाग्रज को गलत है ॥ ऐलफैल चैलमैल खलक में गैललित गजन की टेल पेल सैल उसलत है । तारा सों तरनि यूरि धारा सों लगत जिमि थारा पर पारा पाराव्ार ज्यों हलत है । ॥ ४ ॥ भुज भुजगेस के वै संगिनी जंगिनी सी वोदि खेदि खाती दीह दारुन दलन के। वखत्तर पाखरन वीच घसि जात मीन पैर पार जात परवाह ज्यों जलन के1 याराष चस्पति के छत्रसाल सहाराज भूषन सकत को बखानि ों बलन के। पच्छी पर छीने ऐसे परे परछीने बर तेरी बरछी ले वर छीने हैं खलन के ॥ ५ ॥ राजत अखंड तेज छाजत सुजस बड़ो गाजित गयम्द दिग्गजन हिये साल को । जाके परताप सों मलिन आफ़ताब होत ताप, तजि दुज्जन करत बहु ख्याल को ॥ साजि साज़ि गज तुरी कोतल कतारी दीन्हे भूषन भनत ऐसो दीन-शातिपाल को | और राजारव मन एक दू न ल्याऊँ अब साहूं को सराहों की सराहों छत्रसाल को ॥ ६ -॥ कचक चयू के अचकचक चहूँ और चांक सी फिरत घाँक t: a . - .