५ ० शिवसिंहसरोज । दू न मंगद बेतु नये नये रेनन नैनन में नदि जू । सू बही वनमाल गरे सिगरो जग साँव-साँवरो के ॥ १ ॥ के ५३३. माधवदास श्रीगोकुलनाथ निज घए धरयो । भक्त हेत प्रगटे श्रीवल्लभ जंग ते तिमिर यो । नंदनंदन भये तष गिरि गोष व्रज उरुग्यो । नाथ विट्ठलसघन वहै के परम हित अनुसग्यो । अति ग्रगाध आपार भंघनिधि तारि अपनो करयो । दास माधव बास देखे चरनसरनै पयो ॥ १ ॥ ४०. सहाकवि * राधिका माधवें एक ही सेज वे घाइ सैं सोई सुभाइ सलोने । प्यारे महाकवि कान्ह के मध्य में राधे कहें यह बात न होने । सुबरे सॉ मिलि है है न साँवरी बावरी वात सिखाई है कोने । सोने को रंग कसौटी लगें पै कसौटी को रंग लगे नहिं सोने ॥ १ ॥ ५४१. मालिंद कवि, मिहींलाल बंीजन, डलमऊवाले सहै दड बैंड ने अखंड महिमंडल में दारिद विखंडन में धीरज धरात है । देस औौ विदेस नरईसन बें भेंट करि करि सरवर नेक नेक ठहरात है ॥ गिलिम गलीचा पदमालय समूह सदा घोड़े । पील पालकी हमेस दरसात है ।भनत मलिंद महाराजश्रीभुआलसिंह तेरी भागि देखे ते दरिद्र भागि जात है ॥ १ ॥ ५४२. महताय कवि कहै मन चित को लगाय के चरन रहाँ ख़ान कइंत गुनगाथ. सो गहो करों। वैन यों कहत रानारूप को पढ़ॉंगो बाई नैन हूं। के पं. कृष्णाचिहारी मिश्र वी० ६० ए ल्० एल्० बी० ने प्रमाणित किया है कि महाकवि कालिदास कवि ही का पक उपनाम है ।