पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२८०

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शिवसिंहसरोज २६१ ५५५, मदनगोपाल कवि, चरखारीवाले दुर के चेरे हैं कमेरे रसिकन हू के भाव के भूखे हैं भिखारी घड़े गान के । गुनिन के गाहक औ: यार हैं सपूतन के रूप के रिवैया औौ सनेही बड़े तान के ॥ पंडित के पालक औ संत के सरन रहें प्रति कर तासों से कुलीन बड़ी कान के । एते पर सदन भरोसे सीताराम के और साँ न काम जेते लोग हैं। जन के ॥ १ ॥ ५५६. मेश्रा कवि ( चित्रभूषण ) दोहा-चित्रालंकृत भेद बहु) को कघि बरमै पार । कठुक भेद गुरुषद सुमिरि, भाखत मति अनुसार ॥ १ ॥ संवत सुनि रस व ससी, जेठ प्रथम सानि वार । प्रगट चित्रभूपम भयो, कवि मेधा सिंगार ॥ २ ॥ जे भाविष्य ऋतमान कवितिन साँ विनय हमार। परमकृपाउत सादरन, करिहैं याहि प्रचारि ॥ ३ ॥ अपनी मति लघु समु िकै) या ते संग्रह कीन । उदाहरन सतकविन के, राख्यौं मुमति प्रवीन ॥ ४ ॥ सब्द अर्थ पद दोप जर) औौगुन अगन विचार । मच्छर मोटे पातरन, नाहीं एक विचार ॥ ५ ॥ ५५७महबूब कवि तौलौं कुल-रीति दीख गल नलपट्टी चट्टी अतरन भट्टी मलयाचल यमल के । कितन सुमन चित्त वित्तन हरत हित मित्तन करत रित चाहत आमल के ॥ चित्रित चरित्र तेरीचाहन विचित्र अति फहै महबूख दिल मिलत उछल के रमो एक कंदरन कंदरपकंद आाज अंदर बगीचन के मंदिरन चल के ॥ १ ॥ जानै राग रागिनी १ वर्तमान !