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पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/१७५

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श्यामास्वप्न

रोय रोय हम नदी बहाई आँसुन की तह. बहते हैं ।
यहाँ वहाँ या और कहीं बस तलफ तलफ दुख सहते हैं ।
पैंया परौं गुसया जाने जी में जो मेरे श्राती ।
कहे से क्या अब लिख लिख भेजी सब कुछ हम तुमको पाती।।
हाथ धरो या साथ तरक कर मैं न अाह करनेवाला ।
है कपोतव्रत गरदन तेरो कभी न हूँ टरनेवाला ॥
प्रान जाय पै प्रन न नसावै कही तेरी हम करते हैं।
यहाँ वहाँ या और कहीं बस तलफ तलफ दुख सहते हैं ।
छोड्यौ तू मझधार हमैं कहु. कौन पार करनेवाला ।
तेरे सिवा नहिं धीर हमारी पीर कौन हरनेवाला ।।
जौ तेरे सनमुख मर जाते तो न सोच जी में करते ।
एक नजर भर देख भला हम मौतहु से नाहीं डरते ॥
श्यामा बिनै सुनो जगमोहन हियो प्रान तन दहते हैं।
यहाँ वहाँ या और कहीं बस तलफ तलफ दुख सहते हैं ।

सवैया

दूर बसे बस भागन आँगन तौहू भन्यौ इक श्रास समीरन ।
प्रीति की डोर न टूटै कबौं वरु बाढ़ मनो सुनु द्रोपदी चीरन ॥
वैरि ये कैसे कटै दुख द्यौस दुखी जिय होत हमैं कहुँ धीर न ।
भोगत प्रान परे केहि पातक सो जगमोहन को हरै पीर न ॥

श्राएं सुधि धीरज विलात विललात हियो

मीन जलहीन लौ तलफ तलफावतो।

कोचत करेजन कजाकी कमजात काम

कानन कमान, तान कानन दिखावतो।।

चंदहू चकोरपिय मंद गहि बानि हाय,

चोंच ना चकोर सुधा बूंदन चुवावतो ।