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पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/२५

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गीता महामाला मंत्र की ऋषि-सुरति सिद्ध कराने की आचार्य- कामानल में हवन कराने की होता-परपुरुष-आलिंगन-तीर्थ में उतरने की सीढ़ी-इत्यादि (पृ० ३१)

इस प्रकार इस उपन्यास के चरित्र सभी प्रकार विशेष ( Types ) हैं और ये प्रकार विशेष रीतिकालीन काव्य के हैं। कमलाकांत और श्यामसुंदर अनुकूल नायक हैं, श्यामा मुग्धा अनूढ़ा परकीया नायिका है और वृन्दा सखी और दूती है। ये सभी के सभी कवि और सहृदय हैं । जहाँ वे आशुकविता करने में असमर्थ हैं वहाँ अन्य कवियों की कविताएँ सुनाया करते हैं । ये कविताएँ शृंगार रस से सराबोर हैं । इस प्रकार इस उपन्यास का सारा वातावरण बहुत कुछ रीतिकालीन परम्परा-सम्मत और अयथार्थ हो गया है। इस अयथार्थ वातावरण में स्वप्न की अतयं और अनबूझ घटना-परम्परा ने उपन्यास का सारा कथानक बहुत जटिल और असंगत बना दिया है । स्वयं कवि को इसका बोध है इसीलिए तो वह स्वयं कह देता है :

बहुत ठौर उनमत्त काव्य रचि जाको अर्थ कठोरा ।
समुझि जात नहिं कैहूँ भाँ तिन संज्ञा शब्द अथोरा ।
सपनो याहि जानि मुँहि छमियो बिनवत हौं कर जोरी ॥

(पृ. १६३)
 

तृतीय और चतुर्थ प्रहर के स्वप्न में इस प्रकार के उन्मत्त काव्य आवश्यकतासे अधिक हैं। प्रथम और द्वितीय प्रहर के स्वप्न में मुख्य कथा के नायक-नायिका का परिचय; उनका एक दिन अचानक चार आँखें होने पर प्रेम का उदय फिर उसका क्रमिक विकास, प्रेम-संदेश और पत्रों का आदान-प्रदान, फिर प्रेम-निवेदन, अभिसार और अंत में समागम आदि का क्रमिक वर्णन बड़े ही स्वाभाविक ढंग से कवित्वपूर्ण शैली में किया गया है जिसमें जटिलता और असंगति प्रायः है ही नहीं ।