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पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/७८

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श्यामास्वप्न

देखु यह देवनदी कीन्हे सब देव याते
दूतन बुलाय के विदा के वेगि पान दै।
फारि डारि फरद न राखु रोजनामा कहूँ
खाता खतजान दै बही को बहि जान दै॥"

यम की छोटी बहिन यमुना से सख्यता करने से यमराज-नगर के नरकादि बंदियों को मुक्ति कराने में कुछ प्रयास नहीं होता . प्रयागराज में यमुना की सहचरी होकर इस भाव को दरसाती है. इसका समागम इस स्थल पर उनकी श्याम और सेत सारी से प्रकट होता है .

कहूं प्रभा श्यामल, इन्द्रनीली
मोती छरी सुंदर ही जरीली।
कहूं सुमाला सित कंज जाला
विभात इन्दीवरहू रसाला ॥१॥
कहूं लसँ स विहंग माला
कादम्ब के संगम बीच जाला।
कहूं सुकाला गुरूपत्र राजै
मनो मही चंदन शुभ्र छाजै ॥२॥
कहूँ प्रभा चंदहि की विभासै
जथा तमौ छाय मिली विलासै ।
उतै शरत् मेव सुपेत लेखा
जहाँ लख्यौ अंबर छेद भेखा ॥३॥
कहूँ लपेटे भुजगो जु काले
भस्मांग सों शंकर केर भाले ।
लखो पियारी बहती है गंगा
प्रवाह जाको यमुना प्रसंगा ॥४॥