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पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१५१

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गाइ द्विजराज तिय काज न पुकार लामै,
भोगवै नरक घोर चोर. -को अभयदानि ॥५०॥
[दो०] सुनि सपाति सपच्छ है, रामचरित सुख पाय ।
सीता लका माँझ हैं, खगपति दयी वताय ॥५१।।
[ दडक ]
हरि कैसो वाहन की विधि कैसा हेम हस,
लीक सी लिखत नभ-पाहन के अ क को। -
तेज को निधान राम-मुद्रिका-विमान कैधौं,
लक्षण को वाण छूट्यो रावण निशक को ।।
गिरि गजगड ते उडान्यो सुवरन अलि,
सीता पद पंकज सदा कलक रंक को।
हवाई सी छूटी केसोदास आसमान मैं,
कमान कैसे। गोला हनुमान चल्यो लक को ।।५२।।

( इति किष्किंधा कांड )

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(१) हवाई = आतशबाजी का बाण। (२) कमान = तोप। ,