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पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२३७

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[दो०] वाको थोरो दोष मैं, दीन्हो दड अगाध॥
राम चराचर-ईश तुम, क्षमियो यह अपराध॥१६२॥
लवणासुर-वध
[भुजगप्रयात छद]
बिदा ह्वै चले राम पै शत्रु हता।
चले साथ हाथी रथी युद्धरता॥
चतुर्द्धा चमू चारिहू ओर गाजैं॥
बजै दुंदुभी दीह दिग्देव लाजै॥१६३॥
[दो०] केसव वासर वारहे, रघुपति केशव वीर।
लवणासुर के यमनि ज्यों, मेले यमुना तीर॥१६४॥
[मनोरमा छद]
लवणासुर आइ गयो यमुनातट।
अवलोकि हँस्यो रघुन दन के भट॥
धनुवाण लिये निकसे रघुन दन।
मद के गज कौ, सुत केहरि को जनु॥१६५॥
[भुजगप्रयात छद]
लवणासुर--सुन्यो तै नहीं जो इहाँ भूलि आयो।
बडो भाग मेरो बडो भक्ष पायो॥
शत्रुघ्न--महाराज श्रीराम हैं क्रुद्ध तोसों।
तजै देश को, के सजै युद्ध मोसो॥१६६॥
लवणासुर--वहै राम राजा दशग्रीवहता?
सो तो बंधु मेरो सुरस्त्रीनरता॥