सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
(१९४)

बालक--[ झूलना छद ]
सुनु मैथिली नृप एक को लव बाँधियो वर बाजि।
चतुरंग सैन भगाइकै तब जीतियो वह आजि॥
उर लागि गौ शर एक को भुव मैं गिर्यो मुरझाइ।
वह बाजि लै लव लै चल्यो नृप दु दुभीन बजाइ॥१९७॥
[ दो०] सीता गीता पुत्र की, सुनि सुनि भई अचेत।
मनौ चित्र की पुत्रिका, मन क्रम वचन समेत॥१९८॥
[ झूलना छद ]
सीता--रिपु हाथ श्रीरघुनाथ को सुत क्यौं परैं करतार।
पति देवता सब काल तौ लव जी उठे यहि बार॥
ऋषि हैं नहीं, कुश है नहीं, लव लेइ कौन छडाइ।
बन माँझ टेर सुनी जहीं कुश आइयो अकुलाइ॥१९९॥
कुश--[दो०] रिपुहि मारि संहारि दल, यम ते लेउँ छुडाइ।
लवहि मिलैहौं देखिहौं, माता तेरे पाँइ॥२००॥
[ सवैया ]
गाहियो सिंधु सरोवर सो जेहि बालि बली बर सो बर पेरयो।
ढाहि दिये शिर रावण के गिरि से गुरु जात न जातन हेरयो॥
शूल समूल उखारि लियो लवणासुर पीछे ते आइ सो टेरयो।
राघव को दल मत्त करी सुर अकुश दै कुश केशव फेरयो॥२०१॥


(१) बर = वट वृक्ष (२) बर = बल से। (३) सुर = ललकार; टेर।