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पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२६३

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स्यौं सुत सीतहि लै सुखकारी।
राघव के मुनि पाँयन पारी॥२९२॥
[ मनारमा छंद ]
सुभ सुंदरि सोदर पुत्र मिले जहँ।
वर्षा वर्षै सुर फूलन की तहँ॥
बहुधा दिवि दुदुभि के गन बाजत।
दिगपाल गयदन के गन लाजत॥२९३॥
[ रूपमाला छंद ]
सुंदरी सुत लै सहोदर वाजि लै सुख पाइ।
साथ लै मुनि वालमीकिहि दीह दुःख नसाइ॥
राम धाम चले भले यस लोकलोक वढाइ।
भॉति भाँति सुदेस केसव दुदुभीन बजाइ॥२९४॥
भरत लक्ष्मण शत्रुहा पुर भीर टारत जात।
चौर ढारत हैं दुवौ दिसि पुत्र उत्तमगात॥
छत्र है कर इद्र के सुभ सोभिजै बहु भेव।
मत्तदति चढ़े पढ़ैं जय शब्द देव नृदेव॥२९५॥
[ दोधक छंद ]
यज्ञथली रघुनदन आये।
धामनि धामनि होत बधाये॥
श्री मिथिलेशसुता बड भागी॥
स्यौ सुत सासुन के पग लागी॥२९६॥