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पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२३४

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रामस्वयंबर।

जाय समीप करन रस वस महँ कही मनोहर यानी ।
दियो लपन कहं नाथ इसाग मीता भीता' जानो ॥
नाककान बिन कियो लपन तिहि कादि कराल कृपानी।
बूची नकटी पंचवटी ते भगी महा भय मानी ॥३७३।।
ताके बंधु वली खर दूषन विसिरा लखि भगिनी को।
चौदह सहस निसाचर लै संग आये पंचवटो को ।
राखि गुहा मह लपन सहित सिय समर हेतु सजि रामा ।
करि फेदिंड घोर टंकारहि कियो खजुग संग्रामा ।३७४॥

(दोहा)

कीन समर अति प्रखर खर अग्निवान तजि राम ।
• खड़कि खाख खर को कियो पूरे सुर-मुनि-काम ।। ३७५ ।।
खर दूपन अरु त्रिसिर को जरत धूम द्वग जाय ।।
रोवन आगे लंक महं परी सुपनखा रोय ॥ ३७६ ॥

सीता-हरण और नालि-वध

(छंद चौवोला)

सुनन लंकाति भयो कुपित अति गयो मरीच नगीवा।
कह्यो ताहि सासन करु मेरो ते मम अन्नहि सींचा।
है माया कुरंग संगहि चलु जनस्थान महं प्राजू।
राजकुंवर दशरथ के आये कीन्ह्यो मोर अकाजू ॥३७॥
अस कहि लै मारीच संग रावन दंडकवन आयो ।
इत एकांत जानकी को लै राम बचन मुख गायो॥