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पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२३६

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२२०
रामस्वयंवर।

२२० रामस्वयंवर।. सो सयरी सुग्रीव सीय की दीन्ह्यो सुरति बताई। आये प्रभु पंपासर सानुज सबरी देखन धाई ॥ ऐहै प्रभु यहि हित सबरी फल चोखि चीखि धरिराख्यो। सबरी कुटी जाय रघुनंदन प्रेमविवस फल चास्यो ॥३८४० दैलवरी को गति कोसलपति चलि पंपासर माने। विप्ररूप मारुतसुत मिलिकै कपिपति सों अनुरागे॥ करि अविचल सग्रीव मित्रता मीत दुखी जिय जानी। एकहि वान वालिबध जीन्हा सप्तताल करि हानी ॥३८५|| राजा तहँ सुग्रीव वनायो करि अंगद जवरोजू । वर्पा बसे प्रदर्पन हर्पन वपे दितावन काजू ॥ पावस की पुरन सेोमा लखि सवै सरद ऋतु आई। सुरति दिवावन को सुग्रीवहि दीन्ह्यो लपन पठाई ॥३८॥ गवन्यो सखा समीप सुकंठहु कपि-वाहनी बुलाई। चारि दिसन छाया सिय हेरन पठयो कपि समुदाई ॥ जाम्बवान अंगद हनुमानहु दच्छिन दिप्त कहं धाये। प्यासे प्रविसे स्वयंप्रमा विस तिहि प्रभु पास पटाये ॥३८॥ तासु प्रभाव गये सागर तट संक्ति मे सब भाँती। तह तिनको सब खबरि घतायो आय गीध संपाती ।। हनूमान का लंका-गमन दोहा। .जांरवान तव रिच्छपति कीन्ह्यों मनहिं विचार । . .