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पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२३८

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२२२
रामस्वयंवर।

२२२ रामस्वयंवर । (दोहा). नांधि सिंधु सत जोजन पार जाय कपिराया , चल्यो सीय खोजन द्रुतै अति लघु रूप बनाय ।। ३६४ ॥ . (कवित्त) करत प्रवेल देख्यो लकपुरी नारी वेस द्वार में हमेस रहै रच्छन के हेत है । बोली कहां है कील कौन अहै तेरो ईस, कौन ताहि भेज्यो दलसीस के निकेत है। गुल्यो सुनि ताके बैन ह्यांके प्रगटे बनै न इनी चलऐन मूठो गिरी सो अवेत है। उठि कर जोरि कही कपि सो निहोरि जान्यो ऐहै कईस खेत बंधुन समेत है ॥ ३६५ ॥ सी को त्यों असोक वाटिका में जाय देख्यो कपि मेधन के मध्य ससोरेखा सी सुहाई है । मैलते , सहितः मानोकंचन की लता लोनी अंक लपटानी ज्यों मनाली दसाई है। हंसहि विहाय बायसीन मध्य मानो हंसी सिंह के वियोग सिंहनी सी चिलखाई है। देखि कपिराई हिय मानि सुचिताई मेटो उवै दुचिताई चढ़ि वैठ्यो तर जाई है । ___जानको उतारि दीन्हीं चूड़ामनि हनुमान, कैकै सो प्रनामै फल खानै मन मान्यो है । कह्यो जो निदेस पाऊँ छुधा को मिटाऊँ खलगन विलखाऊँ मातु ऐसा ठीक ठान्यो है ॥ सुनिकै दियो असीत मावै सेाई करी कोस बील विले तोसे नहिं उनन मैं मान्यो है। सीय पद वंदनकै याटिको निकंदन को चल्यो चायुनंदन अनंद अति सान्या है ॥३७॥ नैनन निहारे ।