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चतुर्थ दृश्य
(स्थान—गंगातट, बरगदके घने वृक्षके नीचे तीन चार आदमी
लाठियां और तलवारें लिये बैठे हैं, समय—१० बजे रात।)

एक डाकू—१० बजे और अभीतक लौटी नहीं।

दूसरा—तुम उतावले क्यों हो जाते हो। जितनी ही देरमें लौटेगी उतना ही सन्नाटा होगा, अभी इक्के-दुक्के रास्ता चल रहा है।

तीसरा—इसके बदनपर कोई पांच हजारके गहने तो होंगे?

चौथा—सबलसिंह कोई छोटा आदमी नहीं है। उसकी घरवाली बन ठनकर निकलेगी तो १० हजारसे कमका माल नहीं।

पहला—यह शिकार आज हाथ आ जाय तो कुछ दिनों चैनसे बैठना नसीब हो। रोज रोज रातरात भर घातमें बैठे रहना अच्छा नहीं लगता। यह सब कुछ करके भी शरीरको आराम न मिला तो बात ही क्या रही।