पांचवां अङ्क
२६९
अचल—नहीं, घर तो नहीं देखा है।
हलधर—तो उसे मारोगे कैसे?
अचल—किसीसे पूछ लूंगा।
हलधर—तुम्हारे चाचाजी और बाबूजी तो मेरे घरमें हैं।
अचल—झूठ कहते हो। दिखा दोगे?
हलधर—कुछ इनाम दो तो दिखा दूं।
अचल—चलो, क्या दिखाओगे। वह लोग अब स्वर्गमें होंगे। हां, राजेश्वरीका घर दिखा दो तो जो कहो वह दूं।
हलधर—अच्छा मेरे साथ आओ मगर बन्दूक ले लूंगा।
अचलको देखते है, अचल दौड़कर बापकी
हलधर—(मनमें) अब यहाँ नहीं रह सकता। फिर तीनों रोने लगे। बाहर चलूं। कैसा होनहार बालक है। (बाहर आकर मनमें) यह बच्चातक उसे बेश्या कहता है। वेश्या है ही। सारी दुनिया यही कहती होगी। अब तो और भी गुल खिलेगा। अगर दोनों भाइयोंने उसे त्याग दिया तो पेटके लिये उसे अपनी लाज बेचनी पड़ेगी। ऐसी हयदार नहीं है कि जहर खाकर मर जाय। जिसे मैं देवी समझता था वह ऐसी कुलकलङ्किनी निकली! तूने मेरे साथ ऐसा छल किया! अब