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दूसरा अङ्क

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बटोरे। एक प्रकारका आनन्द और उत्साह मालूम हो रहा था। यह ट्रिप (क्षमा कीजियेगा अंग्रेज़ी शब्द निकल गया) चक्कर, इसी लिये तो लगाया गया था जिसमें हम जरूरत पड़नेपर सब काम अपने हाथोंसे कर सकें, नौकरों के मुहताज न रहें।

सबल--इस चक्करका हाल सुनकर मुझे बड़ी खुशी हुई। अब ऐसे गस्तकी ठहरे तो मुझसे भी कहना,मैं भी चलूंगा। तुम्हारे अध्यापक महाशयको मेरे चलने में कोई आपत्ति तो न होगी?

अचल--(हँसकर) वहाँ आप क्या कीजियेगा, पानी खींचियेगा?

सबल--क्यों, कोई ऐसा मुशकिल काम नहीं है।

अचल--इन नौकरों में दो चार अलग कर दिये जायँ तो अच्छा हो। इन्हें देखकर खामखाम कुछ न कुछ काम लेनेका जी चाहता है। कोई आदमी सामने न हो तो आलमारीमेंसे खुद किताब निकाल लाता हूं। लेकिन कोई रहता है तो खुद नहीं उठता उसीको उठाता हूँ। आदमी कम हो जायंगे तो यह आदत छूट जायगी।

सबल--हाँ,तुम्हारा यह प्रस्ताव बहुत अच्छा है। इसपर विचार करूँगा। देखो नौकर खाली हो गया जावो जूते खुलवा लो।

अचल--जी नहीं अब मैं कभी नौकर से जूता उतरवाऊंगा ही नहीं और न पहनूंगा। खुद ही पहन लूंगा, उतार लूंगा।