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पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१२९

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पहला खण्ड] पाण्डवों का वनवास हमारे भाई बड़े दुग्व से वनवास कर रहे हैं। उन्हीं के उद्धार का उपाय करने के लिए हमने गह के अंशों का तुच्छ ममझा है। सब लोकों में पूजनीय देवताओं के गजा इन्द्र अर्जुन की दृढ़ता और उत्साह से प्रसन्न होकर बाले :- हे पुत्र ! यदि तुम महादेव जी के दर्शन प्राप्त कर लो ता हम तुम्हें अपने सब अत्र दे दें। इसमें उनके दर्शनों के लिए तुम तपस्या करी । तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी। देवराज इन्द्र के अन्तर्धान हो जाने पर अर्जुन कठोर तपस्या में मन लगा कर वहीं रहने लगे। पहले उन्होंने भोजन कम कर दिया; धीरे धीरं कुछ न ग्बाने लगः अन्त में उर्वबाह होकर खड़े रहे । इस तरह वे चार महीने तक बगबर तपस्या की मात्रा बढ़ाने गये। अर्जुन के इस शारीरिक कैश मे दुग्वी होकर वहाँ के महर्षियों ने महादेव के पास जाकर निवेदन किया :- हं शङ्कर ! महातं जम्त्री अर्जुन की कठिन तपस्या से हम लोग बड़े दुखी है। हम नहीं जानन इमग उनका क्या मतलब है। आप उनकी मनोवाञ्छा पूर्ण करके उनका शान्त कीजिए । ब्राह्मणों की बातें सुन कर भूतों के स्वामी शिवजी बोल :- हे तपस्विगण । अर्जुन के लिए तुम लोग दुखी मत हो। हम शीघ्र ही उनकी इच्छा पूरी करेंगे। इसके बाद तपस्या के पाँचवें महीने के शुरू मे एक दिन अर्जुन ने देखा कि एक सुअर बड़ी नजी से उनकी तरफ दौड़ा आ रहा है। अर्जुन ने रुष्ट होकर धनुष उठा लिया और उसे मारने के लिए बाण छोड़ा। सुअर के पीछे एक व्याध भी दौड़ा आ रहा था। उमने भी उसी समय बाग चलाय्य । दोनों बारण प्रचण्ड वेग में सुअर की देह में घुस गये। इससे उमने बड़ा भयङ्कर दानव रूप धारण किया; पर तुरन्त ही मर गया । अर्जुन क्रुध होकर व्याध से कहने लगे :- सुअर को पहले हमी ने अपना निशाना बनाया था, फिर क्यों तुमने उस पर बाण छोड़ा। क्या तुम्हें अपने प्राणों का जरा भी भय नहीं ? शिकार के नियमों के विरुद्ध तुमने हमारे माथ बरताव किया है। इससे हम तुम्हें जरूर ही यमलोक को भेजेंगे। वह नेजस्वी व्याध बाला :- हे तपस्वी ! तुम बड़े घमण्डी हो। इस वन के हमी मालिक हैं और हमी ने पहले उम्म जानवर को अपने बाण का निशाना बनाया था । हे मूर्व ! तुम अपना दोष दूसरे पर क्यों मढ़ते हो ? अर्जुन रूखा उत्तर सुन कर बड़े मष्ट हुए और बाण बरसाने लगे। पर यह देख कर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ कि वह व्याध प्रसन्नता से उनके तेज़ बाण सह रहा है। तब दृने क्रोध से अर्जुन नाबड़-नाड़ और भी पैने बाण छोड़ने लगे। पर जब उन्होंने देखा कि अग्नि के दिये हुए उनके दोनों तरकस खाली होने लगे और वह तेजस्वी पुरुप बिना किमी घाव के लगे ग्वड़ा मुमकग रहा है । नब वे बड़े ही विम्मित हुए और सोचने लगे :-- ये हैं कौन ? कोई देवता हैं या खद महादेवजी हमारे सामने प्रकट हुए हैं ? जा हो, यदि ये शिवजी नहीं तो और कोई भी देवता, दानर और यक्ष क्यों न हो, निश्चय ही हम इमे हग सकंगे। ___नब बचे हुए बाण अलग फेंक कर अर्जुन अपने धनुप की दोनों नाकों से आघात करने लग। किन्तु उम नेजस्वी पुरुष ने बलपूर्वक उनके गाण्डीव धनुप का पकड़ लिया। तब उन्होंने तलवार की वार की; पर वह भी उम अद्भुत तंजवाल मनुष्य के मस्तक पर लग कर चूर चूर हो गई। अन्न में