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पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/७

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भूमिका महाभारत सर्वमान्य ग्रन्थ है। हिन्दू-मात्र उसे पूज्य दृष्टि से देखते हैं। उस पर उनका यहाँ तक पूज्य भाव है कि उसे वे वेदों के बराबर मान्य समझते हैं। इसी से उसकी गिनती पाँचवें वेद में है। यह ग्रन्थ ज्ञान-रत्रों का अक्षय्य भाण्डार है। इसके आधार पर अनन्त प्रथ-रचना हो चुकी है, और अब तक होती जाती है। न मालूम कितने काव्य, कितने नाटक, कितने उपन्यास, कितने जीवनचरित और कितने पाख्यान इसकी बदौलत, आज तक, लिखे गये हैं। सारं भूमण्डल के विद्वान् जिसे शिरसावन्द्य समझते हैं वह हमारा अनमोल गीता-रत्न इसका एक अंश विशेष है । इसी महाभारत को ध्यानपूर्वक पढ़ने और इसमें कही गई बातों का विचार करने से आज तक इस देश में अनेक वीरं, अनेक देशोद्धारक, अनेक तत्त्वज्ञानी और अनेक पण्डिनों का प्रादुर्भाव हुआ है। कोई बात ऐसी नहीं जो महाभारत में न हो; काई तत्त्व ऐसा नहीं जिसका निरूपण महाभारत में न हो; कोई शास्त्रीय विषय ऐसा नहीं जिसका विवेचन महाभारत में न हो । महाभारत को हिन्दु-समाज का जीवात्मा कहना चाहिए। जैसे महत्त्वपूर्ण उपदेश महाभारत से प्राप्त होते हैं वैसे और किसी ग्रन्थ से नहीं। तुलसीदास की बदौलत रामायण की कथा का प्रचार तो घर घर हो गया है। महलों से लंकर झोंपड़ियों तक में राम-चरित का कीर्तन होता है परन्तु महाभारत का पाठ-उस महाभारत का पाठ जिसकी सबसे अधिक आवश्यकता है-वही कर सकते हैं जो संस्कृत के अच्छे पण्डित हैं। सो एक तो संस्कृतज्ञ पण्डित ही कम हैं, दूसरे उनमें से अधिकांश इस इतने बड़े ग्रन्थ को मोल ही नहीं ले सकते, क्योंकि उसका मूल्य बहुत है। इन कारणों से महाभारत के पाठ, परिशीलन और मनन से होनेवाले बहुत बड़े बड़े लाभों से हिन्दू-समाज का एक बहुत बड़ा अंश वञ्चित रहता है। यह बड़े परिताप की बात है । जिस ग्रन्थ में हमारे पूजनीय पूर्व-पुरुपों की दिगन्तव्यापिनी कीर्ति का कीर्तन हो; जिस ग्रन्थ में हमारं धीर, वीर, पराक्रमी और तेजस्वी पुरुषों का चरित हो, जिस ग्रन्थ में हमारे पुराने कला-कौशल, ऐश्वर्य, प्रभुत्व और एकाधिपत्य का इतिहास हो-उसके पाठ से वञ्चित रहना हम लोगों के लिए बहुत बड़े कलङ्क की बात है। भारत की अन्यान्य भाषाओं में महाभारत के कितने ही अनुवाद हो गये हैं; उसके आधार पर कितनी ही पुस्तकें बन गई हैं; उसका सारांश लेकर कितने ही छोटे मोटे ग्रन्थ लिखे गये हैं। जिस उर्दू को हम तुच्छ दृष्टि से देखते हैं उस तक में महाभारत का एक अच्छा अनुवाद विद्यमान है। परन्तु, हाय ! जिस हिन्दी को हम सारे भारत की भाषा बनाना चाहते हैं उसमें इस पूरे ग्रन्थ का कोई सर्वाङ्गसुन्दर अनुवाद ही नहीं ! जिस तरह के ग्रन्थों की इस समय बहुत ही कम ज़रूरत है उनके लिए तो बड़े बड़े प्रबन्ध किये जायँ, परन्तु जिसके उद्धार बिना हमारे पूर्वजों की कीत्ति के डूबने का डर है उसके अनुवाद के प्रभाव पर खेद तक न प्रदर्शित किया जाय ! इस सम्बन्ध में हिन्दी के हित-चिन्तकों को मराठी भाषा की "भारतीय युद्ध" नामक पुस्तक की प्रस्तावना पढ़नी चाहिए। यह प्रस्तावना भारत के एक प्रधान राजनीतिज्ञ, सम्मान्य सम्पादक और अद्वितीय विद्वान् की लिखी हुई है। उसके पढ़ने से मालूम हो जायगा कि महाभारत का महत्व कितना है और उसके प्रचार से देश को कितने लाभ की सम्भावना है। श्रीयुत सुरेन्द्रनाथ ठाकुर, बी० ए०, बँगला के प्रसिद्ध लेखक हैं। उन्होंने महाभारत का मूल आख्यान बँगला में लिखा है । किसी पुस्तक का सार खींचने में बहुत कुछ काट-छाँट करने की जरूरत पड़ती