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पृष्ठ:सप्तसरोज.djvu/५७

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पंच परमेश्वर
 


बच्चों की आंखोंकी तरह सांझ होते ही बन्द हो जाता है,कोई नजर न आया। आस पास कोई गांव भी न था। मारे क्रोधके उन्होंने मरे हुए बैलपर और तरें लगाये और कोसने लगे, अभागे तुम्हे मरना ही था तो घर पहुँचकर मरता। ससुरा बीच रास्ते में ही मर रहा अब गाडी कौन खींचे? इस तरह साहुजी खूब जले-भुने। कई बोरे गुड़ और कई पीपे घी उन्होंने बेचे थे, दो ढाई सौ रुपये कमरमें बंधे थे। इसके सिवाय गाड़ीपर कई बोरे नमक के थे। अतएव छोडकर जा भी न सकते थे। लाचार बेचारे गाडी पर ही लेट गये। वहीं रतजगा करनेकी ठान ली। चिलम पी, गाया, फिर हुक्का पिया । इस तरह साहुजी आधी राततक नींदको बहलाते रहे, अपनी जान में तो वे जागते ही रहे। पर पौ फटते ही जो नींद टूटी और कमरपर हाथ रक्खा तो थैली गायब। घबराकर इधर-उधर देखा तो कई कनस्तर तेल भी नदारद। अफसोसमें बेचारा सिर पीटने लगा और पछाड़ खाने लगा, प्रात काल रोते-बिलखते घर पहुँचा। सहुआइन ने जब यह बुरी सुनावनी सुनीं तब पहले रोई, फिर अलगू चौधरीको गालियां देने लगी, निगोडे ने ऐसा कुलच्छना बैल दिया कि जन्मभर की कमाई लुट गयी।

इस घटनाको हुए कई महीने बीत गये। अलगू जब अपने बैलके दाम मांगते तब साहु और सहुआइन दोनों ही झल्लाये हुए कुत्तोंकी तरह चढ़ बैठते और अड्ड बड्ड बकने लगते, वाह! यहा तो सारे जन्मकी कमाई लुट गई, सत्यानाश हो गया, इन्हें दामोंकी पड़ी है। मुर्दा बैल दिया था, उसपर दाम मांगने चले