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पृष्ठ:सप्तसरोज.djvu/६०

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सप्तसरोज
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मण्डलपर आक्रमण करता है, परन्तु ऐसे अवसर भी आते हैं जब वह स्वय मन्त्रिमण्डलमे सम्मिलित होता है। मण्डल के भवनमें पग धरते ही उसकी लेखनी कितनी मर्मज्ञ, कितनी विचारशील, कितनी न्याय-परायण हो जाती है, इसका कारण उत्तरदायित्वका ज्ञान है। नवयुवक युवावस्थामें कितना उद्दण्ड रहता है। माता-पिता उसकी ओर से कितने चिन्तित रहते हैं। वे उसे कुल-कलङ्क समझते है,परन्तु थोडे ही समयमें परिवार का बोझ सिरपर पड़ते ही वही अव्यवस्थित-चित्त उन्मत्त युवक कितना धैर्यशील, कैसा शान्त-चित्त हो जाता है यह भी उत्तरदायित्वके ज्ञानका ही फल है।

जुम्मन शेखके मनमें भी सरपंच का उच्चस्थान ग्रहण करते ही अपनी जिम्मेदारी का भाव पैदा हुआ। उसने सोचा, मैं इस वक्त न्याय और धर्मके सर्वोच्च आसनपर बैठा हूँ। मेरे मुहसे इस समय जो कुछ निकलेगा वह देववाणीके सदृश है और देववाणी में मेरे मनोविकारोंका कदापि समावेश न होना चाहिये। मुझे सत्य से जौ भर टलना उचित नहीं।

पञ्चोंने दोनों पक्षों से सवाल-जवाव करने शुरू किये। बहुत देर तक दोनों दल अपने-अपने पक्षका समर्थन करते रहे। विषयमें तो सब सहमत थे कि समझूको बैलका मूल्य देना चाहिए,परन्तु दो महाशय इस कारण रियायत करना चाहते थे कि बैलके मर जाने से समझूको हानि हुई। इसके प्रतिकूल दो अन्य मूल्य के अतिरिक्त समझूको कुछ दण्ड भी देना चाहते थे, जिससे फिर किसी को पशुओंके साथ ऐसी निर्दयता करनेका