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पृष्ठ:सप्तसरोज.djvu/६२

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सप्तसरोज
६०
 

थोडी देर बाद जुम्मन अलगू के पास आये और उनके गले लिपटकर बोले, भैया जब से तुमने मेरी पंचायत की, तबसे में तुम्हारा प्राणघातक शत्रु बन गया था पर आज मुझे ज्ञात हुआ कि ऊंचे पदपर बैठकर न कोई किसी का दोस्त होता है न दुश्मन। न्याय के सिवा उसे और कुछ नहीं सूझता! आज मुझे विश्वास हो गया कि पच की जबान से खुदा बोलता है।

अलगू रोने लगे। इस पानी से दोनों के दिलों की मैल धुल गई। मित्रता की मुरझाई लता फिर हरी हो गई।

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