वह यह कि समाजवादी कई तरह के होते हैं। उनमें से कुछ अच्छे होते
हैं तो कुछ बुरे भी । उनमें ऐसे आदमी भी मिल जायेंगे जो हमारा
निमन्त्रण पाकर हमारे यहाँ आएं और हमारी निगाह चुक
क्यासमाजवादियों जाय तो हमारे घर की चीजें भी उड़ा ले जाएं। कुछ
में मिलकर? ऐसे नीतिघ्रष्ट भी होंगे जो सदाचार और दुराचार,
सत्य और असत्य में कम अन्तर करते हैं। कारण,प्रायः
समाजवादी कहलाने वाले लोगों में और दूसरे लोगों के बाह्य व्यवहार
में कोई अन्तर नहीं होता । इसलिए हरएक श्रादमी को जो समाजवादियों
अथवा किसी अन्य वाद-विशेप के मानने वाले लोगों में से अपने सहकारी
चुनना चाहता है, यह मान कर चुनना चाहिए कि उनके अच्छाई का कोई
विल्ला नहीं लगा है और वे बिल्कुल अपरिचित हैं।
बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो अपने आपको समाजवादी कहते हैं,
किन्तु जो स्पष्टतया और पूरी तरह जानते भी नहीं कि समाजवाद क्या
है। यदि ऐसे लोगों से कहा जाय कि हम देश की आय को सब लोगों
में समान रूप से बाँटना चाहते हैं। और ऐसा करते समय हम अमीर
और गरीब, बालक और वृद्ध, पण्डित और भंगी, और पापी और
पुण्यात्मा में कोई भेद नहीं करेंगे तो वे अवश्य ही हमारे इस कथन पर
आश्चर्य प्रकट करेंगे, या हमें विश्वास दिलायंगे कि यह सब अज्ञतापूर्ण
और भ्रमभरा है और यह कि कोई भी शिक्षित समाजवादी ऐसे पागलपन
में विश्वास नहीं करता । वे कहेंगे कि उनके मतानुसार समाजवाद में
'अवसर की समानता' भी चाहिए । इससे शायद उनका तात्पर्य यह
होता है कि यदि हरएक को पँजीपति बनने का समान अवसर मिले तो
पूँजीवाद कुछ नुकसान न करेगा। किन्तु वे यह नहीं समझा सकेंगे कि
आय का समान विभाजन हुए बिना अवसर की यह समानता कैसे
स्थापित की जा सकती है । अवसर की समानता असम्भव है। यदि हम
एक लड़के को फाउन्टेनपैन और काग़ज़ की एक रिम देकर कहें कि
उसको अमुक नाटककार के समान नाटक लिखने का समान अवसर है
तो वह हमारे इस मूर्खतापूर्ण प्रश्न का क्या उत्तर देगा? तो हमें
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समाजवाद:पूँजीवाद
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