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पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/८६

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समाजवाद और पूंजीवाद का अन्तर पूंजीवाद को समाजवाद में परिवर्तित करने के लिए यह आवश्यक है कि हम पहले पंजीवाट धार समाजवाद का अन्तर समझ लें । हमने समाजवाद को नो पहिले बएट में समझने का प्रयत्न किया है । इस दूसरे बएट में हम पंजीवाद को समझने का प्रयत्न करेंगे। इस अध्याय में ने. हम समाजवाद और पंजीवाद में जो मालिक अन्तर हैं उन्हीं का जिक्र करेंगे। पंजीवाद के विषय में पहिली पात जो कहने लायक है वह यह है कि पंजीवाद का 'पंजीवाद नाम ग़लत रक्या गया है । वह हम को भ्रम में डाल देना है। टसका योग्य नाम तो 'दरिद्रवाई' है । उससे भयंकर दरिद्रता का जन्म होता है। यही कारण है कि जो लोग पूंजीवादी पद्धति को श्रादी तरह समझते हैं उनमें से अधिकांश निष्पक्ष लोग उसका अन्त कर देना चाहते हैं। पूंजीवादी लोग जिम नरह 'दरिद्ववाद' को पूंजीवाद का नाम दे कर मचाई को छुपाते हैं, उसी तरह मौजा समाचार-पत्र समाजवाद के सम्बन्ध में यह गलत खयाल फैलाते हैं कि समाजवादी पूंजी का अन्त कर देना चाहते हैं और सभी लोगों को गरीब बना देना चाहते हैं, जबकि पूंजीपति जी की रक्षा करना चाहते हैं और लोगों को धनी बनाना चाहते हैं। आज हम जत्र 'पंजीवाद' शब्द का प्रयोग करते हैं तो उससे हमारा • मतलब होता है 'वह पद्धति जिसके द्वारा देश की जमीन राष्ट्र के हाथों में नहीं रहनी, बल्कि उन लोगों के हाथों में रहती है जिन्हें हम ज़मीदार कहते हैं। उन्हें यह हक्क होता है कि वे चाहें तो उस पर किसी को रहने दे और चाहें नो न रहने दें। चाहें तो उसका उपयोग किसी को करने