उन्हें उधार रुपया मिल भी सकता है। परन्तु जिनके पास ये चीजें नहीं है
चे तभी रुपया पैसा उधार पाते हैं जब उनको साख होती है।
दुसरे का मूल धन व्यवहार करनेही का नाम उधार लेना है। धनी
जिस धन का व्यवहार नहीं कर सकता और लोग उधार लेकर उसका
व्यवहार करते हैं-हां उधार लेते समय उन्हें इस बात की प्रतिज्ञा करनी पड़ती
है कि उस मूल धन को वे लौटा देंगे । धनी अपने मूल धन का सिर्फ सूद
पाता है । जो प्रादमी उस धन का व्यवहार करता है सारा लाम वही
ले जाता है । गोपाल से यदि गोविन्द उधार ले तो उधार लिये गये धन से
गोविन्द ही के कारोबार में सुभीता होगा, गोपाल के कारोबार में नहीं।
उस मूल धन पर गोपाल का हक ज़रूर बना रहेगा, पर उसे वह अपने
काम-काज में न लगा सकेगा, उसे सिर्फ उसके व्याज से ही सन्तुष्ट
होना पड़ेगा।
फई तरह से उधार दिया जाता है । अथवा यो कहिए कि कई तरह से
सान या विश्वास किया जाता है। कभी कभी ऐसा होता है कि जो आदमी
उधार लेना चाहता है वह अपने किसी रिश्तेदार या दोस्त के पास जाता है और
वह उसका विश्वास करके रुपया दे देता है। कभी कभी कोई चीज़ रेहन
रख कर रुपया उधार लिया जाता है । कल्पना कीजिए कि देवदत्त ने
एक बैंगला बनवाया । कुछ दिन बाद उसे रुपये की ज़रूरत हुई। उसने
यादत्त से रुपया लेकर एक दस्तावेज़ लिख दी कि यदि मैं दस्तावेज़ में
लिखी गई मुदत के भीतर रुपया न अदा करटू तो यशदच बँगले को चेच
- कर रुपया वसूल कर ले। बहुत से बैंक ऐसे हैं जो इसी तरह लोगों की
जायदाद रेहन रख्न कर उन्हें रुपया उधार देते हैं। जो जायदाद या जो चीज़ इस तरह रेहन करदी जाता है उसका मालिक उन्हें न समझना चाहिए जिन्होंने उसे रेहन करके रुपया लिया है। नहीं, उसके मालिक थे हैं जिन्होंने रुपया उधार दिया है। रेहन की गई चीज़ या जायदाद से, 'यदि,वेचने पर, उधार दिये गये रुपये से अधिक रुपया वसूल होने की उम्मेद होती है तो सूद कम देना पड़ता है। अन्यथा ज़ियादह देना पड़ता है । जिस चीज़ या जिस जायदाद की जितनी कीमत ती जाती है उससे कमही रुपया उधार मिलता है। यदि कोई पक हज़ार रुपये की लागत का मकान किसी के यहाँ रहन करेगा तो बहुधा उसे आधेरुपये से अधिक उधार न मिलेगा।