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घिदेशी याप्त और आयात माल की कमीशी का परिणाम । ३८५ किस देश को देंगे उसके बदले उससे कुछ न कुछ लेना ही पड़ेगा ! व्यापार, अर्थात् अदला-बदले, का अर्थ तिर्फ दैना' ही नहीं, 'ना-लेना' दोन है। यह बात 'लेन-देन' शब्द से ही सूचित होता है। यह शब्द पैसा है कि इसका प्रति दिन प्रयेाग होता है। देश से यदि माल भेजा जायगा है। उसके बदले बाहर से कुछ लिया भी ज़रूर जायगा । जो माल किस देश को भेजी जायगा चद् धर्मार्थं ते दिया जायगी नहीं, उसके वदले कुछ न कुछ ना ही चाहिए । अच्छा, ने अपने भाल के बदले में कितना माल मिलना चाहिए ? कम मिले तो अच्छा था यादष्ट मिले हैं। अच्छा ? इसके उत्तर में एक वधा भी यहीं कहेगा कि किसी चीज़ के बदले में जितनी ही जियाद६ मलि मिले उतना ही अच्छी । सम्पत्ति एक ऐसा शब्द है कि उसमें हर तरह की चीज़ों का-६र तरह के माल का-समावेश ६ सकता है। यह सम्पत्ति बाहर से अपने देश में अधिक न लाकर. जहाँ तक हो सके, उसे अपने देश से निकाल बाहर करने से क्या कभी केाई देश अधिक समृद्ध भार अधिक सम्पत्तिशाली हो सकता है ? पक उदाहरण लीजिए । दूसरे देश से होने वाला व्यापार साधारण तौर पर सम होना माहिए | ग्रात और अायात माल दोनों की मान्न तुरुय होने, अर्थात् यति माल सम्बन्धी देना, यात माल के बदले से चुकता हो जाने, का नाम सम-यापार या सभ-व्यवहार है। कल्पना कीजिए कि समव्यापार की दशा में इगलंड से ६० लाने धान कपड़ः हिन्दुस्तान लेता है और इसके बदले ६० लाम्न मन अनाज देता है। अब हिन्दुस्तान का यात माल ६० लाग्ने मन अनाज है और आयात माल ६० लाख थान कपड़ा है। अत्र मान लीजिए कि हिन्दुस्तान अपने बात माल का परिमाण बढ़ाकर ७० रग्ब मन करना चाहता है। परन्तु इस ३० लाग्छ भन अधिक अनजि का खप ईंग्लंड में नहीं है। इससे यह इतना अधिक माल पहले भाव से गलंई कभी न लेगा । इस १० लाख्न मन अनाज के बदले १० लाख थान फड़ा देना हैं लंड न मंजूर करें। मान लीजिए कि यदि गलंड ने १० लाख के बदले 4 लाग्न थान आपके दिये तो वो लाग्न थान कपड़े की हानि हिन्दुस्तान को हुई । अर्थात् हिन्दुस्तान को यात माल ७० लाख मन अनाज क्रर, उसके बदले उसे केवल ६८ लाख आन कपड़ा उसे मिला। अयात माल की अपेक्षा यात माल अधिक होने पर भी, हिन्दुस्तान उलटा दे।