मेहनत करनी पड़ती है। जो महनत करता है वह मुफ्त नहीं करता।
उसे मेहनत का बदला देना पड़ता है । यदि वह मेहनत का बदला न लेगा
तो वायगा क्या ? उसे एर्च के लिए ज़रूर कुछ चाहिए। जिसके पास पूंजो.
होगी यहोर्च कर सकेगा। अतएव कोट की उत्पत्ति के लिए जैसे जमीन
पार मेहनत दरकार है बसे हो जी भी दरकार है। इससे पूजो तीसरा
कारश हुई।
तात्पम्य यह कि जितनी चीजें है सबकी उत्पत्ति के प्रधान साधन जमीन, मेहनत और जो हैं। बिना इनके सम्पत्ति गुणों से विशिष्ट कोई चीज़ नहीं पैदा हो सकती । इनका कुछ न कुछ सम्बन्ध होना ही चाहिए-वाह प्रत्यक्ष हो, चाहे अप्रत्यक्ष । पैदा होने के बाद गौर साधनों के योग से सम्पत्ति की फ़ीमत याद बढ़ती है। अब इन प्रधान साधनों का माम कम विचार करना है।
जमीन ।
व्यवहार की जितनी चीजें है सन की उत्पत्ति का आश्रय जमीन ही है।
या आश्रय कभी प्रत्यक्ष होना है, कभी अप्रत्यक्ष जमीन कहने से जमीन
के ऊपर, सार उसके भीतर अर्थात् भूगर्भ, दोनों से मतलब है । उद्भिजों से
ग्याने. पीने और व्यवहार की जो चीजें हमें प्राप्त होती है वे पृथ्वी के ऊपर
ही हमें मिल जाती है। पर ग्बनिज पदार्थ पृथ्वी के पेट से प्राप्त होते हैं।
उन्हें याद कर बाहर निकालना पड़ता है। जब तक वे बाहर नहीं निकाले
जाने तत्र तक नहीं प्राप्त होने । तथापि आश्चय दानों का ज़मीन ही है।
नदी पार समुद्र से प्राप्त होने वाली व्यावहारिक चीज़ों की उत्पत्ति का
अश्रय भी जमीन सी है, क्योंकि नदिया पार समुद्र पृथ्वी ही पर हैं।
उनके भी तल में जमीन हैं। यद्यपि नदी, समुद्र और पृथ्वी के भीतर मिलने
वाली चीजें भी आदमी के काम आती है वे भी उसके व्यवहार की चीजें
हैं तथापि जो चीजें पृथ्वी के ऊपर पैदा होती हैं उन्हों का अधिक काम
पड़ता है। उनमें भी गल्ला अर्थात् अनाज प्रधान है। अनाज ही से मनुष्य,
का जीवन निर्वाह होता है; उसी से उसकी ज़िन्दगी है। इससे, जमीन से