है। उसका सार यह है कि सच्ची सभ्यता आधुनिक सभ्यतासे अच्छी थी। आधुनिक सभ्यता तो स्वार्थसे भरी, ईश्वरको भुलानेवाली और दम्भपूर्ण है। इसमें मनुष्य मुख्यतः शरीरके लिए ही उद्योग करता है। सच्ची सभ्यतामें मनुष्य दयावान, ईश्वरपरायण और सरल होता था। वह शरीरको आत्मिक उन्नतिका साधन मानता था। इस प्राचीन सभ्यताको फिर ग्रहण करना आवश्यक है। इसके लिए मनुष्यको सादगी इख्तियार करनी चाहिए और गाँवका जीवन पसन्द करना चाहिए। भाषणके बाद बहुत सवाल-जवाब और विवेचन हुआ। ऐसा लगता है कि इसका श्रोताओंपर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा।
इंडियन ओपिनियन, २-७-१९१०
२२१. पत्र: मगनलाल गांधीको
जेठ वदी २ [ संवत् १९६६]
[ जून २९, १९१० ]
मैंने तुम्हें ठक्करका लम्बा पत्र भेजा है; इसलिए मैं उसके बारेमें अधिक नहीं लिखता ।
मुझे लगता है कि बोअर युद्धकी तारीखें मेरे पास कहीं-न-कहीं अखबारोंकी कतरनों इत्यादिमें जरूर हैं। अभी उन्हें खोलनेकी फुरसत नहीं है। यह पत्र भी मैं फार्मसे लिख रहा हूँ। अगर तुम्हें उनकी खास जरूरत हो तो मैं इन्हें फिर ढूंढ़नेका प्रयत्न करूंगा। मुझे इतना ही स्मरण है कि यह दल १८९९ के नवम्बर मासमें संगठित किया गया था ।
मोहनदासके आशीर्वाद
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें लिखित मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ४९२४) से । सौजन्य : श्रीमती राधावेन चौधरी । Gandhi Heritage Portal